रुद्रप्रयाग का आदमखोर बघेरा | Rudhar Prayag Ka Aadam Khor Baghera

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Rudhar Prayag Ka Aadam Khor Baghera by श्रीराम वर्मा - Shriram Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आतंक रद घिरे हुए कान में एडक का मारत वे वाह वधरा उस खाली समर के पार-वक्रिया फमर के बाहर भाग गई था-नांच की आर पहाड़ के दंड उत्तार वी आर है गया और तव दुछ दूरी तक बदी बन खता मे झ्वाफर पत्थरा से पूरित नाले में सूयोट्स के कइ घंटों माट मालिक ने अपन मौकर व हरीौर का थह अव प पायो जा बघरे ने छाड तथा था। लडक का वह अबशय परमात्मा वी उसे अनुपम सुप्लि का प्रमाण मात्र घा। मह यात भवि ्वसनीय भड द्वी मालूम हो पर वास्तत्रिक्ता यह थी कि बररिया य॑ काई चाट-फेंट नहीं आई दी) चालीस बकरिया में स एक | भी काई खराच त्क नहीं बाई भी । न रू एवं पह़ासी अपने मित्र के यहा हेक्‍्फा भीन दर सक बठा रहा । कमरे का आगार इस प्रकार था जैस एक पड़ी रखा व कोन पर एक खदी रखा उमराण बनाव सौर पमर में जो दरवाजा था यह बहा से नहा टिखाई पहला था जहा दोना आलमी फर्श पर बढ दीवार स पीठ रूगाए हुबरा पी रहे थ। दरवाजा वत्द था पर माबल नहा लगी थी फ्याकि उस रात छक उमं गाव में काई व्यक्ति मारा नहीं गया था। कपर में अधेरा भा भौर माल्कि मवान ने जस ही अपन मित्र गा हुबशा लिया पैसा वह जमीन पर गिर गया और भधवत कोयल तथा समालू पर पर फल गये । अपन मित्र स यह रुद्देत हुए कि उस अधिक सावधानी से हुकका लेना आहिए दरना जिस पम्वए पर ये बैठ है उममें बंद थराग रुगा दगा आत्मी मांग समदन कय आगे का झुझ और ज्याहीं उसने एसा जिया बैंस ही दरवाजा उच्च दिखाई ल्या। क्षीण चद्रमा अस्त हो रहा या और घूमिर घदिका में उसने दल वि एक बघरा हरवाज से उसके मित्र को लिय जा रहा ह। शुछ दिना बाद जब उस आहसी ने उस घटना था मुझसे मघन किया तब उसने कद्ठा सोह़व में सत्य बाल रहा हू जब मे सापम बच्ला हु कि




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