अनुयोगद्वार सूत्र | Shrimadnuyogdwar Sutram (purvardham)

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Shrimadnuyogdwar Sutram (purvardham) by झावेरचंद जाधव - Jhaverchand Jadhav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# भउुयागद्गार सूत्र 9 फिम्तु जैम सुपर, मूल माझुत वा इच्ति सस्‍्हृत में ही मायः सजिषादित ईं जिन में प्रवेश फरना प्रस्पेफ व्यक्ति फे। सुगम नही दे तया जा ग्रुनरती भाषा में “उब्पादि” लिम् हुए हैं यथपि ये परम उपयोगी दे पिस्तु य एक प्रात क लिये ही उपयुक्त हैं स्व परान्तों फे ।लिय नहीं । ५ इससिये सब हिंतैपी शाम दिन हिस्दी भाषा यो ही प्रायः सते विद्वानों ने स्पीफार किया है इसलिये मेरा विचार भी यही हुआ कि जन शाक्धीं भा हिन्दी अनुवाद फरना चाहिये मिस से भत्पेष प्याक्ति आत्मिक लाभ ले सके। किन्तु इस फाम में अपनी प्रसमधया को देख पर इस शुभ पाये में आज तक पिल्लम्य होता रद अपित ९४७९वें बपका चातुर्मास श्रीक्रीश्ी गण वच्छेदक वा स्थविरपद विमूषित श्री स्वामी गणपतिरायजी महाराज ने कसूर नगर में किया ता मैं भी आपके चरणों में ही निवास फरवा या तय घुके बायू परमानन्‍्दजी ने घ १० मुनि ज्ञानचन्डजी नें प्रेरित किया कि आप भी अलुयेगदारजी सूत्र फा ऐन्दी अचुवाद प्रो मिससे पहुत से प्राणियों फो जैन शासन क अमूल्य ज्ञान फी भाप्ति हो क्‍योंकि रस सत्र में मायः सभे ब्रिपयों फा समावेश है ओर प्रस्पेफ विषय फो घड़ी योग्यता के साथ षणेन किया गया है और जैन सिद्धान्त फी यहुत हो सुंदर शैली से व्यारया फी गई है पत्पेफ विषय फी व्यार्या उपक्रम १ निच्षेप २ अनु ग़म ३ नय ४ द्वारा की गई है । इसी वास्ते इस का नाम अल॒यों गद्धार है । यया-“स्थामिषायक सूप्रेश सहाथेस्प अलुगीयते अमुकुणोत्रा योगोस्पद्, आअभिषेष पिस्पेव संयेज्यशिष्पम्पः प्रततिपादनमसुयोगः सुत्रायफय नमित्यर्थ! धपयवा एफस्पापि सत्र स्पानन्तोर्य इस्पर्थों महान सूत्र स्वछयु ततघाजु ना सत्रेण सदायस्‍्पयोगो अजुयेग दया अजुयोगस्प विधिबंक्रण्यो थया पयर्म अब एम शिष्पस्प फपनीर्प द्वितीयबोरे सोपिनिधुक्तयधे फयन मिश्नस्तृतीयवाराया हातु भसगालुगतः सर्वोप्पर्थीषाच्पस्तदुर्क दे सच्तस्थेखन्भुपवमोबओोनिश्खुविमीसतो डः मी अहनो विकसित पशेविशों ऋण माओो की वे म आती इस्पादि प्रफार से अनुयेगग फी विधि बेन करे रे है तथा अन्य भकार से




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