श्री गायत्री पुरश्चरण पद्धति | Gayatri Purasharan Paddhatti

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Gayatri Purasharan Paddhatti  by जीवणलाल भाणजी ओझा - JivanLal Bhanji Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अआ्रीगायत्रीपुरथ्वरणपद्धतिना प्रकादनसंबन्धे वे बोल आज वर्षो थ्यां कच्छप्रान्तमां रहेनारा अमो पुष्करणाज्ञातिना आ्राह्मणो ऊुंवईमां रहीए छीए. अमारामां घणाओ यथाशक्ति वेपार अने घणाओ क्षत्रियक्ुछोत्पन्न भाटीया- ज्ञातिनी यजमानबृत्ति करीने पोतानी आजीविका चलावे छे. अमारी वधानी एवी इच्छा यई के एक आपणुं मंडब्ठ स्थापी प्रतिवर्ष भगवत्मीद्यर्थ एकाद यज्ञ आपणेज वधाए आपणाज द्व्यमांथी करवो अने आपणामांथीज योग्य कोई विद्वान शोधी काढी तेना द्वारा ए कर्म करावडु, आम निर्णय थया पछो ““श्रीपुशिकर (पुष्करणा) यज्ञमंडल” ए नामनुं एक मंडर स्थापवार्मा आव्युं अने प्रथम से० १९८१ना चातुर्मोसमाँ सर्च ब्राह्णणोनी तथा द्विजोनी उपास्यदेवता जगज्लननी श्रीगायत्रीदेवीना मंत्र जपातुप्ठान- पंचांगसहित श्रीमायत्रीपुरश्चरण शरु कययु; अने ए बखते अमारा पंडित जीवणछाल (जीवुभाई)भाणजी ओझाने ए कर्मना आचाये निमवामां आव्या. तेओए यथाशक्ति ए काये कराव्युं, तेमज अमर खज्ञातिपंडित रामचंद्र खीमजीए पण आचार्य तरीके वे बरस ए कार्य कराव्युं, जीवुभाई पासे उपरोक्त कर्मने योग्य “श्रीगायत्रीपुरश्वरणपद्धति'नो एक ग्रन्थ तेमना घरमां द्ोवाथी ते छपाववानी इच्छा सहु कोईने थई अने ए कार्य श्री जीवणलालने सॉपवार्मा आव्यु. तेओए ते काये वे. शा. से, शाखी अम्ृतरारू ज्ीकमजी आचार्य तथा संशोधन मादे वे. शा. सं. शास्त्री तुलजाशंकर घीरजराम पंड्याने सोप्यु. आजे आ भनन्‍्य तेओ सर्वना अयत्नथी तयार थयो छे जेने आप सर्वनी समक्ष मुकतां अमोने घणोज हर्ष थाय छे, आ पुस्तक छपाववानुं ज्यारे नकी थयु यारे ते आर्थिक सहाय विना थबुं अशक्य' हतु एटले तेने सादे अमो प्रथम वधा मलीने रा. रा. श्री. नारायणदास लक्ष्मीदास पासे गया अने सेओने आ संवंधमां चातचीव करवां तेओए रु. ४००मभी उदार मदद अथम आपी, सारपछी श्री. धर्मसिंह देवकरणे झ- ३००नी मदद आपी, श्री. कल्याणजी बीशनजीए रू. ३०० तेमज रु. २५०नी मदद मब्दी, रक्ष्मीदास नारायणदासनी कुंपनी- मांधी अमने आपी. रु. ३०० एक भाटीया सद्भइस्थ तरफधी मब्ठी छे. रझ, १०० छद्स्मीदास गििमजी व्यास, आम रुपीया १६५० प्राप्त खतां अमोए ए मन्य छपाववानी आरंम क्यो अने ते श्रीजगदम्बिका गायत्रीदेवीनी पायी परिपूर्ण यय्यो छे. पुस्तकनुं काम धारवा




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