आराधनासार | Aaradhanasar

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Aaradhanasar by श्रीमद देवसेनाचार्य - Shrimad Devasenacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+ रे३+ सस्तर को सम बनाकर उस पर प्रासुक तन्दुल के चूर्ण वा मसूर की दाल आदि के चूर्ण व कमल केशर से समान सीधी रेखा खीचे क्योकि टेढी रेखाएँ विषम होने से सघ मे उपद्रव, आचार्य का मरण आदि की सूचक होती है। जिस दिशा मे ग्राम हो उस दिशा मे क्षपक का मस्तक कर सस्तर पर स्थापन करना चाहिए और उसके समीप मयूरपिच्छिका आदि उपकरण रखने चाहिए। सभव है, सक्लेश परिणामों से सन्‍्यास की विराधना करके प्राण छोडे हो और व्यन्तर आदि देवो मे उत्पन्न हुआ हो। पिच्छिका आदि सहित स्वकीय शरीर को देखकर मै मुनि था, मैने ब्रतो की विराधना की ' ऐसा जानकर पुन सम्यग्दृष्टि बन सकता है। सोमसेन भट्टारक के मतानुसार - सस्तर (दाह सस्कार की भूमि) को सम बनाकर चारो ओर चार खूटी गाडे और उनके आधार से सस्तर को मौली या लच्छा से तीन बार वेष्टित करे। पद्मासन से शव को सिर से पैर तक सुतली द्वारा माप कर उसी माप के प्रमाण सस्तर पर तीन रेखाओ द्वारा एक त्रिकोण बनावे। सर्वप्रथम भूमि पर चन्दन का चूरा डाले। फिर रोली से त्रिकोण रूप तीनो रेखाएँ डाले (टूटी एवं विषम न हो), उसके बाद उस त्रिकोण के ऊपर सर्वत्र मसूर का आटा डाले। त्रिकोण के तीनो कोनो पर तीन उल्टे स्वस्तिक बनावे और तीनो रेखाओ के ऊपर तीनो ओर सब मिला कर नौ, सात या पॉच बार ई लिखे। त्रिकोण के मध्य मे ३७ हीं अर्ह लिखे। फिर ३» हीं ह काष्ठसञ्चय करोमि स्वाहा इस मन्त्र को पढकर त्रिकोणाकार ही लकडी जमावे, पश्चात्‌ ३» ही हों झौ असि आ उ सा काष्ठे शव स्थापयामि स्वाहा।' इति मन्त्रेण पचामृतमभिषिज्च्य त्रि प्रदक्षिणा कृत्वा काष्ठ शव स्थापयेयु , मन्त्र का उच्चारण करते हुए पश्चातानुपूर्वी से शव का पञ्चामृत अभिषेक करके एवं तीन प्रदक्षिणा देकर शव को काष्ठ पर स्थापित करे और '3 3& 3# 3 रर रर अग्निसधुक्षण करोमि स्वाहा, यह मन्त्र बोलकर अग्नि लगावे। आराधनायुक्त क्षपक के मरण से सघ पर कया प्रभाव पडेगा यह जानने के लिए, किस नक्षत्र मे मरण हुआ है, यह जानना आवश्यक है। जो नक्षत्र पन्द्रह मुहूर्त के होते है उन्हे जघन्य नक्षत्र कहते है। ये छह होते है शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, स्वाति, आश्लेषा और ज्येष्ठा। इनमे से किसी एक नक्षत्र मे या उसके अश पर मरण होने से सघ मे क्षेमकुशल होता है। तीस मुहूर्त के नक्षत्र को मध्यम नक्षत्र कहते है। ये पन्द्रह होते है- अश्विनी, कृतिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, तीनो पूर्वा, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और रेवती। इन नक्षत्रो मे या इनके अशो पर यदि क्षपक का मरण होगा तो एक मुनि का मरण और होगा। पैतालीस मुहूर्त के नक्षत्रो को उत्कृष्ट नक्षत्र कहते हैं। ये छह होते है तीनो उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा। इन नक्षत्रों मे या इनके अशो पर मरण होने से निकट भविष्य मे दो मुनियो का मरण होता है।




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