यह नरदह | Yah Nardah

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Yah Nardah  by विमल मिश्र -Vimal Misha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपने की खो दू ताझि दिमाग थौर्डा ठण्डा हो जाए 1” मां ने कहा, “दीक है। जो अच्छा ग्रमझ वही कर | व्यय ही तुझे फजीहत का सामना करता पड 1” . , सच, यह फजीहत ही है। मौसीजी के दवाव के कारण वह विशाया से शादी करने को तैयार हुआ था। आदमी का उपकार करना यदि वाप है और उस पाप के अपराध के कारण यदि उसे कोई सझ्ा मिलती है तो उसे वह सर-आर्खों पर रखते को प्रस्तुत है। यही वजह है कि नप्तिंग होम में खड़ें-खडे वह वही बात सोच रहा थार! विशया अब वेडापोठा में नही है। बद्द अत्र समुराल चली गई है । बहा उसके दिन कंसे बीत रहे हैं, यह बढ़ी जानती है। लेकिन मौसीजी को भले ही कोई शारीरिक सुख प्राप्त न हुआ * हो लेकिन मानसिक दृष्टि से उन्हें घोड़ी-बहुत शान्ति जछूर मिलो है। यह जानकर संदीप को भी खुशी हुई है । गाड़ी से आने के दौरान मौसीणी थोड़ी-बहुत बातें कर रही थीं। मौसोजी के मुह से प्विर्फ एक ही वात निकल रही थी--विशासा और विशाघा! एक बार पूछा था, /विजश्ञासां का कोई समाचार तुम्हें मिला है बेटा ? वहां जाने के बाद वह कम-से-कम एक चिटूठी दे सकती थी ।” २ संदीप ने मौ्वीजी को सात्वना देने के प्रयाल से कहा, “वह अवश्य ही सकुशल है। आप चिस्ता नहीं करें। वह मजे में हे 1” “तुम उसकी सयुराल गए ये ?” सदीप क्या कहे ! बस इतना ही कहा, “हा मोसीजी, मैं गया था ।' “गए थे ? देखने पर वह कैसी लगी ? अच्छी है ने?” संदीप जानता है, इस झूठ में कोई अन्याय गही है। रोगी को स्वस्थ घनाने के लिए सत्प-गधत्य का विचार नहीं करना चाहिए । “हा, अच्छी तरह है” “मेरे दारे में कुछ बोल रही थी ?” संदीप ने कहा, .''हा, यापके दारे मे वार-वार कह रही थी। प्रूछठ रहो थी--मा कीसी है? पे (तुमने क्या कहा ? मेरी बीमारी की चर्चा नही की है ते?” “नही; कहा कि तुम्हारी मा अच्छी त्तरह हैं ।” ऐ “अच्छा ही किया मे ) वह सुख्ची हुई है, मेरे लिए यही सौभाग्य की बात है बेटा । अब मैं मर भी जाऊ तो मुझ कोई दुःख नहीं होगा ।' उसके बाद जरा चूप रहकर मौसीनी बोली, “और मेरा दामाद ?” संदीप ने कहा, “सौम्य बाबू भी मजे में हैं ।” विधा की शादी हो गई, अब तुम भी शादी कर लो बेटा। तुम्हारी मा भी अब काफी उम्रदार हो चुकी हैं । बहू आकर उनको थोड़ी सेवा-मुधृपा करे । अब कितने दिनों तक तुम्हारी मां हाथ जलाकर खावा पकराएंगी ? आते के समय मा ने कहा था, “दुर्गा--डुर्गा-7/ यात्रा शुरू करने के पहले (दुर्गा नाम का स्मरण करने से, कहा जाता है, शुभ होता है। लेकिन सदीप का इतना अशुभ बयों हुआ ?_ संदीप को क्यों जिन्दगी-भर वदकिस्मती का शिकार होना पढ़ा ? क्यो और किसलिए उसे इतने बरसों तक जेल की सजा भुगतनी पड़ी ? ... थाद है, इतनी यावनाओं के वीच भी वह मौसीनी के चेहरे पर हल्वी-सी मुस्फु राहु उभार वढा या, वस यही उसके सत की सालना के लिए प्र्याष्त है । मह नरदेह : 25




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