दिल्ली चलो | Delhi Chalo

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Delhi Chalo by आनन्द विद्यालंकार - Aanand Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जत्पाह और जाश की एक खद्दर दौद गयो | लोग तो पैयार, बैठे थे । दे तो कैवल इस प्रतीत में थे कि सस्याग्रद का सूजघार और कांग्रेस की यागदौर सम्भाक्षने बाता वह वृद्ध सेनानी मद्गात्मा गांधी ऊाह क्या थालेश देता है | पर भारत के भाग्य में दे थारेश नहीं घदे थे ] सरकार में £ श्रगस्‍्त की भोर ह।ते द ते गाधी, नेहरू प्रति सथ अमुख नेताओं चो गिरफ्तार कर लिया। देश के प्रमुग्य मगरों में टेलोफ़ोन सदफ उठे और लेताशं की गिरफ्तारी का यह समाचार स्‌ मदद द्वीते होने ही सारे देश में शाग की तरद फैल गया । यह सच कुछ एकदम भ्रनाशित न होते हुए जनता मे विस्मय विस्फारित नेप्रों सं इसे देखा भर स्‌ ना। धैर्य मे अपनी सीमा सोदी और निराश! के सीमातीव छोर से भीपण विद्रोह का एक ज्यार फूट पड़ा | श्राग की चिनयारिया देश के कोने कोने में छा गयीं और उसी झआाग में बद्ी ५ढ़ी सरकारी इमारतें, दफ्तर, डाक्खाने भौर स्टेशन धू घू करके जलने लगे | पठरियां उसखाड़ी जाने खगी।; रेखे गिरायी जाने लगी और सरकारी स्थाना पर कब्जा किया जाने खगा। चलिया में आजाद। के लिए थादली हुईं जनता ने बिमा कौई खून- खराबी किए सकारले की सरकार स्थापित बर छी | यद्ध सब कुछ हुआ ब्रिना क्िंसी अधिकृत श्रादेश और पूर्य याजना के] देश सें जो एक जगद्व हुआ, धून की बीमारी की तरद् सव जगद बैसा ही हुआ । सरकार स्तस्मिद थी। उसे इस प्रझार के देश-यारी विद्येद़ की आशका भहीं घी। पर फिर भी बह झसारधान पढह्ठी थी। पिड़ोह के फूल्ते ही दमन का बशीद् चक्र तेजी से पूमत छगा। जगड़-पगद गांलियाँ चली » सासूहिक जुमात॑ किये गए थौर सहस्रों “यक्तिय! को गिरफ्तार करथे कैलों मे डाह दिया गया। भीएण दमन ने जनसार जक आतक सा विहा (६ *७ )




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