श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप | Shri Madbhagwadgeeta Yatha Roop
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
598
श्रेणी :
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अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (1 सितम्बर 1896 – 14 नवम्बर 1977) जिन्हें स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जाना जाता है,सनातन हिन्दू धर्म के एक प्रसिद्ध गौडीय वैष्णव गुरु तथा धर्मप्रचारक थे। आज संपूर्ण विश्व की हिन्दु धर्म भगवान श्री कृष्ण और श्रीमदभगवतगीता में जो आस्था है आज समस्त विश्व के करोडों लोग जो सनातन धर्म के अनुयायी बने हैं उसका श्रेय जाता है अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद को, इन्होंने वेदान्त कृष्ण-भक्ति और इससे संबंधित क्षेत्रों पर शुद्ध कृष्ण भक्ति के प्रवर्तक श्री ब्रह्म-मध्व-गौड़ीय संप्रदाय के पूर्वाचार्यों की टीकाओं के प्रचार प्रसार और कृष्णभावन
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झान्दोलन का संचालन करने के लिए मुझे धन्यवाद देने आते थे । उनमें
कुछ का उदयार था कि अमरीकी जनता का सौभाग्य है कि मैंने कृष्ण-
भावनामृत आन्दोलन का प्रवर्तत अमरीका में किया। परन्तु वास्तव में
इस झाम्दोलन के झादि-पिता स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण हैं। उनसे भतीत
काल में प्रारम्भ हुआ यह आन्दोलन शिष्य परंपरा के द्वारा मानव-समाज
में चला आ रहा है। यदि इस सम्बन्ध में मुझे कुछ सफलता मिली है,
तो उनका श्रेय स्वयं मुझको नहों, वरन् मेरे नित्य गुरु, कऋृष्णकृपाविग्रह
विष्णुपाद परमहंस परित्राजकाचार्य १०८ भी थीमद भक्तिसिद्धान्त
सरस्वती गोस्वामी महाराज पभ्रभुपाद को है। ४
इस सन्दर्भ में यदि मुझको कुछ श्रेय है, तो बस इतना ही कि
मैंने धीमद्भगवद्गीता को विकृत किए बिना, उसके यथार्थ रुप में
(यथारूप--/४६ 10 15) प्रस्तुत किया है। मेरे इस “भगवदुगीता यथारूप'
संस्करण से पूर्व गीता के जितने भी संस्करण प्रकाशित हुए है, उसमें से
प्रायः सभी किसी ने किसी स्वार्थ-पू्ति के लिए लक्षित थे । परन्तु 'श्रीमद्-
भगवदगीता' को प्रकाशित करने में हमारा एकमात्र लक्ष्य भगवान्
श्रीकृष्ण के संदेश को प्रस्तुत करना है। हमारा काम श्रीकृष्ण की
इच्छा को प्रकट करना है; यह राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, वैज्ञानिक, भ्रादि
लौकिक विद्वानों की मनोधर्मी के समान नहीं है, क्योकि नाना
प्रकार के ज्ञान से युक्त होने पर भी उनमें श्रीकृष्ण के ज्ञान का प्राय:
अभाव ही रहता है। जब श्रीकृष्ण कहते है कि, “मन्मना भव मद्भक्तो
मद्यानि मां नमस्कुर इत्यादि तो इन तथाकथित विद्वानों के विपरीत
हम ऐसा नहीं कहते कि श्रीकृष्ण ओर उनको भ्रन्तरात्मा में भेद है।
श्रीकृष्ण भद्दय-तत्त्व हैं; उनके नाम, रूप, दिव्य, गुण, लीला ग्रादि
में कोई भेद नही है। जो मनुध्य परम्परा के भ्रन्त्गंत कृष्णभक्त नहीं है,
उसके लिए श्रीकृष्ण के इस अद्वय-तत्त्व को जान पाना कठिन होगा ।
सामान्यतः देखा गया है कि तथाकथित विद्वान, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक
तथा स्वामीगण, जो श्रीकृष्ण के पूर्ण तत्त्वज्ञान से रहित हैं, भगवदुगीता
पर भाष्य-रचना करने के रूप मे श्रीकृष्ण के भस्तित््व को समाप्त कर
देने का ही प्रयत्त करते हैं। भगवदुगोता के ऐसे ग्रप्रामाणिक भाष्यो को
मायावादी भाष्य कहा जाता है। श्रीचेतन्य महाप्रभु ने हमे इन प्रप्रामाणिक
ख
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