कर्मा प्रकृति | Karama Parakriti

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Karama Parakriti by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकृति-नाम १४, अ्रनादेयकर्म - १५, झुभनास - १६, श्शुमनास - अस्तावना दि० सानन्‍्यता जिसके उदयसे शरीोरमें प्रभा न हो । ( कर्मप्र० गा० १०० टीका ) जिस कर्मक्े .उदयसे सुन्दर हों। ( कर्मप्र० गा० ९९ टी० ) जिस कर्मके उदयसे दरीरके अवयव कुरुप हों । ( कर्मप्र० गा० १०० टी० ) १६, निर्माणनामकर्म - इसके दो भेद किये गये हैं - स्थाननिर्माण १७, यशस्कीति - १८, उध्यगोतन्र न ६५, नीचमोतन्र - भर प्रमाणनिर्माण। स्थाननिर्माणके उदय- से अंगोपांग अपने स्थानपर होते हैं और प्रमाणनामकर्मके उदयसे जिस अंगका जितना प्रमाण होना चाहिए उतना होता हे । ( कमंप्र० गा० ९९ टीका ) जिसके उदयसे संसारमें यश फैले । ( कर्म० गा० ९९ टी० ) जिस कर्मके उदयसे छोक-पूज़ित, कुलमें नम हो। [कर्मप्र० गा० १०१ दी० ) जिस क्मके उदयसे जोव लोक-नि्च कुल- में उत्पन्न हो (कर्मप्र० गा० १०१ टी० ) २०, वीर्यान्तरायकर्म - जिस कर्मके उदयसे जोवके वल-वीर्यकी प्राप्ति न हो, किसी कार्यके करनेका उत्साह नहों। (कर्मप्र० गा० १०२ टी ) घरीरके अवयव रण इबे० मान्यता जिसके उदयसे जीवको चेष्टा, सर्वमान्य न हों । ( प्रा० कर्मवि० गा० १४३६ न० ,, »“१टी०) जिस कर्मके उदयसे नामिसे ऊपरके अव- यवसुन्दर हों. (प्रा० कर्मति० गा० १४२ बेंठ + का ५० ) जिस कर्मके उदयसे नाभिसे नीचेके अवयब असुर्दर हों ) ( प्रा० कर्मवि० गा० १४३ न० 1 ५० ) इवे० शास्त्रोंमें इसके दो भेद नहीं किये गये हैं और इसका कार्य अंगोपांगोंको अपने अपने स्थानमें व्यवस्थित करना इतना ही माना गया हैं । ( कर्मवि० गा० २५ टीका ) वचतादि लिसके उदयसे दान-तपादि जनित यश फैले । एक दिशामें फँलनेवाली ख्यातिको यश ओर सर्वदिश्ामें फैलनेवालो ख्याति- को कीत्ति कहते हैं 1 ( कर्मवि० गा० ५१ टीका ) जिस कर्मके उदयसे वुद्धि-विहीन, निर्धन एवं कुछप भी व्यवित लोकमें पूजा जावे। ( प्रा० कर्मवि० गा० १५४ ) जिस कर्मके उदयसे वुद्धिमानू, धनवान और रूपवान्‌ भी व्यक्ति लोकमें निन्दा पावे । ( प्रा० कर्मवि० १५५ ) जिस कर्मके उदयसे बलवान, नोरोग और साम्ध्यवान्‌ होते हुए भो बीर्यस विहोन हो। ( प्रा० कर्मवि० गा० १६६) उपयुक्त विभिन्नवाके अतिरिक्त एक और सबसे बड़ी दोनों सम्प्रदायोंमें कर्मप्रकृतियोंके पष्य-पापमें विभाजनपी पाप प्रझ्धठिमें परिगणित विदा गया हैं, तब मम्ययत्य प्रझत्तियों, तथा चारित्र मोहे अन्तर्गत जो नंद ५) यह यह हि दिगम्वर सम्प्रदायके सभो कर्म विषयक ग्रन्थों में घतिया कर्मों की सभी प्रकृतियोंक प्वताम्बर सम्प्रदायमें मोहनीय कर्मके अन्तर्गत दर्धनमोहकी थे नोकपाय प्रह्ृतियों हैं पुर्षदेंद एन सोने प्रशुहियोंदी पृष्पप्रकृतियोंम गिना गया है। उनमें-से हास्य, रति और ( देखो तत्त्वाथ भाष्य झ० ८, सू० २६ )




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