वीरस्तुतिः | Veerstuti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
413
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सावार्थकेस, प्रवोधार्यमदय्तमावश्यकलम् । अतोड्प्यस्य मू्यज्य॑ सम्परधार्य,
चुहइत्स्तुह्यमेतत्तथाधध्यात्मपूर्णण् ॥ थुभाअष्यायजस्य यथा बुद्धिशकिः, समरस्ते
यथायोतुभावं च ज्ञात्ता ४ ह॒संस्कारशन्देन वा भाषया च, सद्द्ध कृत दस मुख्यों-
उसि द्वेतुः । तथा मात््भाषानिबद्ध प्रसिद्ध, जनानामनेदार्थंतलप्रद्प्् ॥ तथा
जपनार्थ च भावस्य तसय, ऋजुबी मदुर्वाईस् भाषानुवादः। तदाइध्वश्यकत्व च
त्तस्मैव भाव॑, मद॒त्व॑ भगृह्य स्फुद भासते च ॥ गुमरे चाजुदादो$ता कालीय-
कचानिवाेन क्षेमेन्दुनाइत अक्ाशः ॥ झइतः भ्रावकेयाय तस्येव तत्व, तमा
सुप्रश्िद्धोइनुवादः खतख्यः ॥ कदाचिजटानों त्रियुटदलबन्दे च जनता, प्रतक्ता-
नामेवं यदे संदुपयोगथ भव॒ति। सदेतद्भावेन विदुधजनसेवामु निरतः, प्रकाश
स्वेत्राईखिलविशद्बोधाय कृतवान् ॥ पविश्नोड्य॑ पांठो बहुरुचिकरों मेइस्दि
मनसा, करोमि ख्ाध्यायं मननपरिपूर्णन सुखतः ।॥ महानन्दखादों भवति कर-
प्राबात्म सतत, सुरून्ध सौभाग्य अतिदिनवितृष्णो विर्मति ॥ सुमुक्षूणां चित
सुखरसमुश्ान्ति वितनुते, सुहार्जेशासा नो बहुविधमलं चास्प विद्रतिः 1 तदा जाता
भावाखिज्मतिसुपूर्दिनिंगदिता, सदेव ज्ञातब्यं यठिमुनिगणेसुक्तिनिख्यैः ॥ यदा5९-
वश्यकत्वेन थस्थाइसि पूर्ति, प्रजाता च संस्कारतोध्नेकवास्म् । समर्थश्व
खबोड़तो रुब्धमेतत्तदाउस्पोत्तर पत्रमेतददातु ॥ आथो पाठकानों जनानों च॑
स्यक्ते, ठथा वाचकोपर्स्यततो मुक्तमेतत्) ममाउस्य प्रकेखेस वा ज्ञाफ्नेन, व
वा55वश्यकत्वं न दा कारणत्वम् ॥ यदा पीयते चाम्त खादवद्धिसद्वा नोच्य-
तेध्मत्म॑ता मेघसि कीबरू। सुम्रिष्ट च दिक्त मदीय॑ कियदा, प्रति हि लोके
रखखादुरुत्वम् ॥ मुदा वर्णन दस्य जिद्ठा करोति, खर्य वर्णनस्पाविसेदुं विधते ॥
मया न्यायमार्गानुरोधेन चैब, स्कीयायसी छेखनी स्थाप्यतेड्च् ॥
भावार्थ-यद झऋव्य भीमत्यवकृताह़पत्रके छठवें भ्रध्ययकी जजुएम और
औलिक वस्तु दे. और 'घीरस्तुति' या पुच्छिस्छुणं! के नामये अविप्रस्यात
है। बहुतसे जैनवन्धुओंकों दो यह मुखस्थ होती दे, अनेक जिशास महानुमाद
इब््म प्रातश्सार्य व्यवधान रद्दित निद्य पाठ करते दें, और जैन सम्राजमें यह
पविन्न पाठ इतना अधिक प्रिय दे कि इसके कई संस्करण अक्ाशित-दो चुक़े हैं
अमुद्दे अनम्तसामस्यक्रा बेन करना ठो मानो छद्स्थमातुषी शक्तिके
यादर दे, और इस दिपयके वर्णेनरुतनेमें भ्रीमान्, सुधर्माचाये जैसे महान
क्योदिषेर और परम योगीको ही योग्य अधिऋआरी सम्श्य यया है। . /»
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