इशोपनिषद आत्मज्ञान | Ishopanishad Atmagyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ishopanishad Atmagyan by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

Add Infomation AboutShripad Damodar Satwalekar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
२८ इशोपनियद्‌ । बह भी आत्माकाही धाचक है। सौ यप ज्ञीवित रहवर यज्ञ कर नका भाव उस दब्दम हैं। इसोलिये इस अध्याय फे द्वितीय मंत्र में “ कर्म करते हुए यहा सौ घपे ज्ञीने की इच्छा फरो ! येसा उप देश किया है । उछब। “ शतऊतु ' शान्देखें निकट सयध है। अठारदये भन्नमे “अग्नि ” शब्द गतियायक दी है क्यों कि वदद गत्यर्थक अग्‌ !' घातुसे बनता है। इस प्रफार आत्मावाचक सवद्दी शब्द पुरपाथथ के वायक दे, यद यहा अत्यत विचार करने योग्य बात है। इन शब्दों खे जो जो आ- त्माक्े गुणधर्म ध्यक्त द्वो रदे हैँ उनका विचार करनेसे आत्माये' धा- स्तथिक स्वछूपका पता लग जायगा । और फ्मे फरना उसका स्पमापदी हैं थद्द वात भी इस विचार से सिद्ध द्वीगी ! अप इन ब्यौका परस्पर सवध क्या है इसका विचार ऋरणना हैं- १३ इस अध्यायक्के विशेष नामोका परस्पर सबंध । इस अध्यायमें ज्ञो विशेष नाम हैँ, दे आत्माकी शक्तिषा घर्णन कर रहे हैं। कई शब्द विशेषकया केवल जीवात्मादा वर्णन करते है और कई विशेषवासे परमात्माक्र/ वर्णव कर रहे ६ । तथा कई ऐसे हैं कि ज्ञो दोनोंका वर्णन समानतासे पर रहे हैं। साधारण अध॑स्थासे उच्च अवस्थातक उनझां केसा प्र्म द्दे और उनसे हम फ्या घोध मिलता हैं, इसका यद्ा विचार करना है। श्थमत यहा इ्छ घात को शावदय स्मरण रफना चाहिये कि, जो पस्मात्माके घांचक शब्द घेदिक वाड्मयमे है, वे परिच्छिन्त क्षर्यात्‌ मर्यादित भाषक्क साथ ज्ञायात्माफ भा पाच क है, और ज्ञो जीवात्माके धाचदा शब्द हं थे अमर्यादित अथ के साथ परमात्माके भी धायक हैं। प्राय सत्र शब्य दोनों पे छिये समानतासे दी प्रयुक्त होते हैं क्यो




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now