रत्नपरीक्षादि - सप्त - ग्रन्थसंग्रह | Ratnapareekshadi - Sapt - Granthasangrah

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Ratnapareekshadi - Sapt - Granthasangrah by ठाकुर फेरू - Thakur Feru

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शक्षपरीक्षा का परिच्चय श्र प्रद्मापमासूत्र में मुबगमोघक से शायद जढर मुदरे का और इंसगम से फिसी तरह के सफटिक काय योध होता है। अर्पशाल्र (२११२९ ) में जैसा इम पहले देश आए हैं, अनेक रस्नों के उठेख हैं। इनमें मोती, हीरा पप्मयण, भैडूय, पुष्पराग, गोमदक, मीछ्रम, च्द्रवायन्त वऔर सूर्यकान्त इज्मादि रनों बी श्रेणीमें भा पाते हैं। कौर, मौसेयद और पारसमुद्क से मणियों के उत्पत्ति स्शन का बोघ द्वोता है| रूट पर्वत का तो पता नहीं पर मौकेयक एन का नाम शायद बछचिस्ताम में ज्ञाझ्यवन में बहनेतराछी मूछानदी से पड़ा दो ( म्रेतीचन्द्र जे० यू० पी० एच० एस० १७ मा० १, १० ६३) छाता ह कि प्राचीन साह्डिष्म में रत्नों की तालिका देने बी कुछ रीति सी बच गई पी | तमिल के झुप्रसिद्ध काम्य ( शिर्ूप्पदिकारम्‌ में मी एक खगद रण्मों का उद्लेज आया है ( शिकृपपिकारम १३।१८०-२०० श्री दीक्षितारद्वाय अ्रेजी भनुषाद, मद्रास १९१९ ) मयुरै में घूमता भ्रामता कोवछन जौद्धरी बाजार में पईंचा । बहा ठसने खार बर्ण के निर्दोष हरे, मरकस, प्रम्ररग, माणिक्प, मीछंबिंदु, स्कटिक, पुष्पराग, गोमंदक और मोती ऐसे । खमक श््‌ हक प्राम रलशझाद्रों में ( अगस्तिमत 9, ६१; धुदमह ११ कय पाठमेद ) रलनों की परल आठ हर से, यपा-( १) उत्पत्ति (२) आकर (३ ) बर्णे भषबा छाया (४ ) जाति (७५) गुण-दोप (६) फक (७) भज़्प और (८) बियाति (नकछ ) के आपार पर, वी गई दे। इस का विस्तार नीचे दिया जाता हे । (१) उत्पसि-यहं उत्पधि से रत्नों की वास्तविक अपना पारशौफिक उत्पत्ति से स्पत्प् है| रत्नों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्राय सव शाहझ्ों का मत है कि मे एक बज़ाइत अपर से पैदा हुए । बुद्धमम (२ १२) के अनुसार एक पराक्ष्मी त्रिछोक विजेता दानव राज बक्चि था | एक समय उसने एर्द्र करे जीत क्रिया | खुझी छड़ाई में उससे पार म पा सकने के कारण देवताओं ने उससे यह में बक्ति-पशु बसने का बर मांगा | उसके एबमस्तु कद़ने पर सौन्नामणि यह्ञ में देवतार्जों ने ठसे स्त॑म से बांध दिया । उसफी लिश्चुद जाति और कर्म से उसके वारीर के सारे अबयष रानों में परिणत हो गए । ऐसा द्वोने पर देव और मार्गो में यह सिद्ध रनों के छिए छीनाप्षपटी होने खंगौ । इस छीनाशपटी में समुद्र, नदौ, पर्षत, बन इस्मादि में ररन गिर कर आकर रूप में परिवर्तित दो गए । इन रण्नों से राक्षस, विप, सर्प और म्पाबियों से तपा पापतम्म में जन्म पा दुर्गिन से रक्षा होती है । जगस्तिमत ( १-९) में मी कहानी का यही रूप है। केजर परक इतना दे कि यह में जमुर के सिर पर इन्द्र ने पत्र माय और बज़ाइत सिर से ही रनों क्री सृष्टि हुई । उसके सिर से ब्राक्षण, मुजामों से छ्षत्रिय, मामि से




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