श्री धर्म्म कल्पद्रुम भाग - 3 | Shri Dharmma Kalpadrum Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
386
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आययजाति | ७दऊ ;
गया तब जो लोग अन्यान्य देशोर्में बस गये थे डनका सम्बन्ध आय॑जातिके
साथ नष्ट हो गया। वे सब उधरही रहकर धीरे धीरे अपने आर्यजातीय आचार
ब्यवहारसे गिर गये और अन्यजाति कहलाने लगे। परन्तु उनकी भाषा आरय-
भाषा होनेके कारण यद्यपि नवीन भाव व जीवनके साथ उसमे कुछ परिवत्तंन हो
गया तथापि पूर्ण परिवर्त्तन नहीं हो सका। यही कारण है कि भारतके सिवाय
अस्यान्य देशोकी भाषाओम भी संस्कृत भाषाके साथ सादश्य देखनेमे आता
है। इस प्रकार क्रियालोपसे भिन्नजाति बननेके विषयमे मजुजीने भी कहा है।--
शनकैस्तु क्रियालोपादिमाः क्षत्रियजातय+ |
चृषरूत्व॑ गता लोके वाह्मणा5द्शनेन च ॥
पौण्डूकाइचोण्डूद्रविडाः काम्बोजा यवनाः छाकाः ।
पारदा पन्हवाश्ीनाः किराता द्रदा। खशाः ॥
सुखबाहूरुपाजानां या लोके जातयों बहिः।
सलेच्छवाचश्वायेवाचः सर्वे ते दस्थचः स्छताः ॥
. उपनयन आदि क्रियालोप और वेद्ाध्ययनाध्यापनके अभावसे नीचे
लिखी हुई जातियाने क्रमशः शुद्ग॒त्व प्राप्त किया है। यथा पौंडूक, औडू, द्रविड्,
कास्वोज, यवन, शक, पारद्, पन्हच, चीन, किरात, द्रद् व खश। ब्राह्मणादि
चार वर्णोके बीचमेंसे क्रियालोपके कारण जो लोग वहिष्कृत होकर वाह्मजाति
कहलाते हैं. वे आर्यभाषा बोलें या ज्लेच्छुभाषा बोलें इनकी गणना दस्युओमे
होती है । इस प्रकार चर्णाअ्रमधर्म्मोक्त क्रियालोप होनेके कारण प्राचीन आये
जातियाँमेसे वहुत जातियां बन गई हैं. और पृथिवीके देश देशम उनका-घासस्थान
हुआ है। महासांरतमें चर्णित है कि राजा ययातिने अपने कई पुन्नौंको भारत-
यर्षसे निर्वांसित किया था और राजा सगरने भी अपनी प्रजाओंमें से बहुत
लोगोको भारतवर्षसे निकाल दिया था। ऋग्वेद्म खुदास राजाके विषयम भी
ऐसी बातें देखनेम आती हैं. कि उन्होंने अपने राज्यस्थ अनेक विद्रोही मलुष्यों
- को परास्त करके राज्यसे निकाल दिया था। इस प्रकार व पूर्वोक्त अनेक
प्रकारसे भारतवर्षसे आयंगर्ण अफ़िका, यूरोप घ अमेरिकाके अनेक स्थानोमे जा
बसे हैं। कालक्रमसे उनके आचार व्यवहार व प्रकृति अन्यरूप हो जानेपर भी
बहुतसी बातें अब भी मिलती हैं और भाषाका मेल भी इसी कारणसे पाया
जाता है। संस्कृत भाषासे लाटिन्, झीक्, जर्मन आदि भाषाओंके मेल होनेका
द्वितीय कारण संस्कृत भाषाकी मौलिकता है। संस्कृत भाषा और देशोकी
ड्ले
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