वन्ध्याकल्पद्रुम | Vandhyakalpdrum

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Book Image : वन्ध्याकल्पद्रुम  - Vandhyakalpdrum

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिक 8) ' शं 2 छत ०० कचरे 0५०७ ०० ०००० ०००५ ०५००५ ०८,७५५ ४०४: ४०४०४ ०४०४०४ न्‍ हर 2 ५ | वह रुकावट है तो ज्लीके प्रजोषत्ति अड्डमें परन्तु मूर्ख स्नी पुरुष उसको नई ४ जानकर कम और ईश्वरपर दोप आरोपण करते है, इसी कारणस इस पुस्तककों £# लिखनेका हमने सकत्य किया था सो हम तो अपना फर्ज अदा कर चुके अत्र है इससे छाम उठानेका काम आर्य स्त्री पुरुषोका है । हम सम्यताके अमिमानी आग्य | सजनोसे निवेदन करते है कि इस पुस्तककों कन्या पाठशाछाओंकी पाठ्य पुस्तकों स्थान |॥ देंवे और अपनी सदृगाहिणी, भगिनी तथा कन्याओंको वितीण करें । वन्ध्या दोपमे ऊपर £, लिखेहुए अमजालमे जो मूर्ख ज्लिया अपना स्लीपन नष्ट करती है उनको इस पुस्तकके । अनुसार यथाथ कारणको दर्शाकर सतमार्ग पर छावें आर सन्तानकी उत्पत्तिमे मुख्य भी दोही कारण है आरोग्य शुद्धक्षेत्र और झुद्धवीर्य्यसे सन्‍्तानरूपी फछ प्राप्त होता है । सो | मूर्ख स्नियोकी समझा उनका उपाय करे, क्योक्ष इस पुस्तक ज्ली जातिके बाह्य और गुद्या- |५ अयवमे होनेवाली कोई भी ऐसी व्याधि नहीं है जिसका वर्णन न किया हो जिन व्याधियोंका ताम निशान भी वैद्य नहीं जानते उन सबका विस्तार्‌ूर्वक निदान रक्षण और चिकित्साका ५ वर्णन है । सन्‍्तान उत्पत्तिमे बाधक नव दोप ज्ञीमें और एक दोप पुरुषमें है सो जो दोप |£ न्तान पक्षकी हानिका पुरुषमे ह उसका भी उपाय इस पुस्तकर्में विस्तारपूर्वक्ष लिखा (£ गया है । इस पुस्तकके १६ अध्याय है इनमेसे १४ अध्यायमे स्लीजातिकी चिकित्साफा ि वर्णन है, एक अआध्यायमें पुरुपार्थहीन पुरुषोंकी चिकित्सा है, सोछ॒हवें अध्यायमें |॥ बालकोके समस्त रोगोंकी चिकित्सा है | उसका विवरण सूचापत्रमें देखिये। प्रथम 12 अध्यायमे यूनानीतिब्बसे तथा डाक्टरीसे और सूक्ष्मरूपमें वैधकसे ल्री जातिके [# सुद्यावयवका शारीरक गर्भाशयकी भाकृति दिखलाई गईं हैं व चिकित्सक । रोगावस्था तथा गर्म रहनेकी रुकावटका उत्तम सतिसे निदान कर सके | 1 ' दूसरे अध्यायमें आयुर्वेदसे योनि व्याप्य ३० प्रकारकी व्याधियोका निदान तथा उनके छक्षण और चिकित्साका विस्तारपूर्वक वर्णन किया है | तीसरे अध्यायमें ४ यूनानी तिब्बसे बन्ध्यत्वके लक्षण तथा चिकित्साका वर्णन है। चीथे अध्याय आयु- धि बेंदसे सन्तानोत्पात्तिकी हानि तथा बातादि दोषोंसे दूषित झुक्रके रक्षण तथा दूषित छ शुकके साध्याउसाध्यका विचार आत्तेव शोणितका प्रतिपादन शुक्र दोपकी चिकित्सा हि आत्तेव दोषके लक्षण तथा चिकित्सा शुद्ध शुक्र और श॒द्धात्तेवके छक्षण नूतन वैयकसे नव दोष वौय्यें दूषित होनेके कारण शुक्रदोष शमनार्थ चिकित्सा, बुल्वर्तीके छक्षण तथा वाीय्यॉपघात वल्वतीके लक्षण ध्वजभडके छक्षण जरासभव तथा क्षयज बलू- ५ वरतीके छक्षण, तथा असाध्य बल्वतीके छक्षण और छैव्य वीजोपधात, ध्वजभब्ठ, ि हा 'जरासंभवादि कैव्योंफी चिकित्सा विस्तारपूर्वेक वर्णन है | पाचवे अध्यायमे ज्नी जातिके ि '। प्रदर रोगका निदान छक्षण, प्रदर रोगवाली दुश्विकित्स्य स्नीके लक्षण, विशुद्ध ऋतुके ४ .2104%23%% 38 %% 2020 20000022:27002 2:02: 7 27770 2/ 3 के ्फ् चर 2०००९०८०४७०५ कक 4 इ०थ ४0०5५ कि धर लिन ७ लक मत +क+ पक-नननन बनमन्‍«भन्‍ी न लक ८




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