सिद्धान्त शिरोमणे गोलाध्याय | Siddhant Shiromane Goladhyay

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Siddhant Shiromane Goladhyay  by उदय नारायण सिंह - Uday Narayan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोलाघ्यायकी विवृत्ति । (१९० ) प्रृथिवी मध्यगासी उसके ऊपर तियंग रेखा निर्दिष्ट रेखा निर्णय करनेमें समतलके ऊपर छायाक्ष प्रवेश बिन्दु निणेय करें। वही बिन्दु चारों ओर छायबृत्तका स्थान होगा । पृथिवीका जो प्रदेश उसमें अ्वेश करता है-वही “अस्त” हैँ अध्यायक्रे अन्तमें ३४ ज्कझोक “ वछून ? बिषयमें लिखे हें । रविमागके सहित संस्थान- वृत्तका अन्तरही स्पष्ट बछन है। उसको निणेय करनेसे अयन और अक्ष चरून की आवश्यकता होती है । परमापक्रम ज्याकों स्पष्ट कोटि ज्यासे गुणन कर क्रान्ति कोटि ज्या ( झज्या ) से भाग करनेपर आयन वलछन होगा । कोटि ज्या अयन भेदमें परिवर्तित होता हैं। उसका नाम आयन वरून है। अक्ष ज्याकी नति ज्या द्वारा गुणन कर टुज्यासे भाग करनेपर अक्ष वन होगा । दोनोंकी दिक समतामें योग करे अन्यथा वियोग करनेपर स्पष्ट वछन होगा । कांति वृत्तके वृत्तपादान्तरमें जिस स्थानमें सम्पूर्ण विश्वलेष मिला है उसको कद॒म्ब कहते हैं । नवम अध्यायके २४ ज्छोकोम दृककम्मेसाधित हुआ है । ऋान्ति वृत्तका जो बिन्दु शक्षितिज चृत्तमें भेद करता हैँ उसकों “लछम्न ? कहते हैं। भहकांति वृत्तस्थ होनेपर उदित होता है। किन्तु अहगण क्रान्तिवृत्तसे स्वर शर परिमाणा- नुसार दूरमें अवस्थित हे इस कारण स्पष्ट ही अहोद्य कार जाननेपर हृक्‌ कम्मेसंस्कार करना पड़ता है। यह संस्कार स्पष्ट वछनसे निर्दिष्ट होता है। ग्रह जब क्षितिजमें स्थित होता हैं तब उच्तराभिमुख क्षितिजही उत्तर ओर स्थापित होता है किन्तु शराभिम्रुल दूसरी ओरको क्रांतिवृत्तमें शरसूछ उदय और ग्रहोदय काछीन क्षितिजमत्‌ कऋान्तिवृत्त बिन्दुके अन्तर स्पष्ट बलनसे जाना जासकता है । भास्कराचाय्यने दोनों वछूनसे एक ही कार निणेय किया है | अक्ष वरूनकों शरद्वारा गुणन अध्य॒ कोटि ज्यासे भाग करनेपर टद्व॒ृत्तगत पाथकय होगा । डदयान्तरकों ऋान्ति कीटिज्यांस भाग करनेपर विषुवद्‌ ज्ञात होगा । उससे ग्राण जाना जावेगा इस अवसरमें भास्कराचाय्येने वलनानयन कालीन उत्क्रमज्या व्यवहारी- गणकों विशेष भत्सना की है । भास्कराचाय्यने दशमाध्यायके ६ स्ोकाम स्ज्ञोन्नति अर्थात्‌ चन्द्रमाके रु 5 छठ शुक्ृत्यकी उन्नाति और अबनाति निर्णय की है । वह कहते हैं कि स॒र्य्य




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