वर्णा और जातिभेद | Varna Or Jatibhed
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.77 MB
कुल पष्ठ :
32
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न क कि क घर्ण और, जीतिमेद-1 हर पी . रथ
! साध रोग ही नगर र.और श्राम भाम घमकर .संसारी लोगों .के धघंर्म 'का उपदेश देते: कि
_ रहते थे और उनको “धर्म मार्ग मं लेगाति रदसे थे अब में .साधू रहे. ल.उपदेश रहा और न.
धम माग रहा. वल्िक सुट्दोभर जैनी रद गये हैं जो थो नासमात्र के जैनी हैं और जिन:
_ के कायम रहने में भी. खंदेश है। . '.. . «४; ' ट
'. हिन्दू घम का रूप धारण करने से यद्यपि जैनियोंको अपने 'धर्मकी 'वड़ी २ अद्भुत
:. कहानियां गढनी पड़ी हैं परन्तु छाखे बनावट करनेपर भी उसमें से असलियत की भ-'
रंक चराबर आरंदी है'और साफ ज़ाहिर दोरदा है कि' जैनधर्म को जाति पौति .के.
केंगड़े से कोई संस्वन्ध नहीं है बडिकं'जाति पांति, जाने ना कोय/हरको भजे.सो हर
की होये” इस कंदोचत के अनुसार सबंही'सेजुष्य धंमं' पालन करते रहे हैं और ' मुनि '
- 'वेनिकर स्वर्ग जाते रहे हैं, जैंसा किं प्रसिद्ध दिगेस्बर श्रस्थ आाराधनासार कथा केंप के'
अचुसार ' राजा अंर्विंदत्त ने अपनी ही बेठी छृत्तिका से शोंग किया जिससे कार्तिकेय
भामको पुत्र ' और चोरमती नाम की कन्या हुई, ऐसी सभ्तामं चास्तवमें मं च्छ॑, चांडाएं'
शीर अरुपर्श शूद्रों से भी घटिया मानी जानी चाहिये तौ भी 'इसे' चींर्मती कन्या का
बघिवाह तो रोडिड नगर के राजा क्ौंचसे हुआ और कार्ति केस नामक पुन सुनि होगयाँं
और खर्ग गया, और, इंघ पूंथची पर ऐसा प्रसिद्ध और माननीय हुआ 'किं उसका सत्य
पान कार्तिकेय तींथ' के नासे से:प्रसिद्ध है,' इस दी प्रकार राजा उपश्रेणिक में यर्संदूंड
भीक की “कन्या ''तिलकूंवती' से ' चिवांह, शिया जिसे से चिढठातपुत्रं नाम-की' पुत्र
हुआ जो सुचि हुआ और घारं तपश्चरण करके स्वार्थ सिद्धि: गया: और चह.-उपनेंमं
शिंक भी सुनि हुआ, इंसही प्रकार सा्कि' नाम के एक: दिंगस्वर सुनिने जय छा नामें
चे एक आांरयका से व्यभिवार कियी और इस व्यशिचार ' से रुद्र नाम की जो पुंनें
उत्पन्न. छुआ बह भी मुनि! हुआ १९०० वियो देवियां जिसके आधीनं हुई', इंसदी प्रकार
पक मज्लाई (घीवर ) की 'कन्याको :जिसका,'नास कारण था एक झवधिज्ानीमुनिमहा-
:. शज ने उसके पूर्व सवखुनीकर उसको दौक्षा दी श्र छुद्धिकिती बनाया; इसदी मकर
नत्दुग्वाछेकी क्या यशीदा भी आयेंका हुई: डे
इसे.प्रकार्र जब ऐसी नीच से नीच.सन्तान भी सुनि होगई तब ऐसा कौन “मंजुष्य'
' रद जाता है जी मुनि न होसके। ' हर. हर
यसयपि जैन कथों ग्रन्थों में चहुतः-कुछ गड़बइ है और किसी में कुछ और किसी मैं
छुंछ कथा छिशली हुई है परन्तु इन उपरोक्त उदादरणों से, इतना अवश्य सिंद्ध'होता है
कि, जैन चर्म में संददी मचुष्यों को मुनिं: दोने और ऊंजेसे ऊंचा: धर्म पाठने का ऐसा
सप.्ठ-अ़िशार: रहा है किःजिसको यहं.फ़थांकार: शी नहीं छिपा सके हैं; इसकें भठावा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...