रत्नावली - नाटिका | Ratnawali Natika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
804 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कथासार १७
का पिंजढा खोलकर चला गया। जब स्थिति अनुकूछ देखकर सुसंगता के साथ
सागरिका फिर कदलीगृह में आने रगी तो सुसंगता ने देखा कि पिजड़े का
दरवाजा खुला हुआ है और मेघाविनी सारिका उड़ी जारही है। उसे खटका हुआ
कि कहीं यह सारिका इस रद्दस्य को किसी पर प्रकट न करदे। इसीलिये उसने
सागरिका को कहा कि चछो--इस सारिका को पकड़ लें। परन्तु तब तक त्तो
उसने उनकी बातें दुहरा दी थीं, और राजा ने उनका कथन यथावत् सुन लिया था।
वहां से जाने के समय शीघ्रता के कारण सागरिका उस चित्रपट को लेना भूल गई थी, वह
वहीं पढ़ा था, राजा की दृष्टि उस पर पढ़ी और सब वार्ते स्पष्ट हो गईं। :विदूषक
तथा राजा उस चित्रपट के विषय में ही बातें कर रहे थे, तब तक उसे लेने के
बहाने आई हुई सुसंगता ने राजाको सागरिका की मनोद्झ्ञा का ज्ञान करा दिया
और समोपवर्त्ती लताग्रह में वत्तमान सागरिका से मिला भी दिया। इसी बीच
राजा को ढूढ़ती हुई रानी वासवदत्ता कदलीगृद में आ गईं और उस चित्रपट को
देख लिया। उनके ज्ञोभ की सीमा न रही, राजा ने कितना भी मनाया, मिन्नर्ते
कीं, पर सब व्यर्थ हुआ-वह तमक कर ही चली गई।
>> ०९००--
दृतीय अ्ड
प्रेस का रोग बढ़ा भयानक होता है राजा ने सागरिका पर जो हृदय चारा,
बह उनके लिये असक्ष हो गया । वह सदा इसी चिन्ता में रहने रगो कि कब तथा
किस प्रकार सागरिकरा से मिल सदूंगा, उनकी देह दिनानुदिन दुबली होने छगी।
राजा की ऐसी स्थिति देखकर विदूषकु वसन््तक को बड़ी चिन्ता हुई। उसने
सुसंगता से बातें कीं तथा उसे समझा दिया कि राजा की अस्वस्थता सिर्फ सागरिका
के न मिलने से ही बढ़ रही है। सुसड़ता ने भी इसके उत्तर में कहा कि मैं उपाय
करूंगी, वासवद॒त्ता ने प्रसन्न होकर मुझे अपने कपढ़े दिये हैं उनले सागरिका को
वासवदत्ता का रूप ग्रहण करवा दूंगी, और स्वयं में काम्वनमाला का वेष ।धारण
कर च्ंगी । प्रदोष समय में हम दोनों माधवी लतामण्डप में आवेंगी, आप महाराज
को वहां ले आदें, फिर सागरिका से महाराज मिल सकेंगे। इस संकेत के अनुसार
सन्ध्या समय महाराज माधबीलतामण्डप में आये । इधर वासवद्त्ता को इस बात
का पता लग गया कि सन्ध्या समय माधवीलतामण्डप में राजा और सागरिका का
सम्रागम होगा। वह स्वयं वहाँ नियत समय पर आई, उसके साथ काब्चनमाला भी
थी। राजा तो कामातुर थे उन्हें वेषसाम्य ने सी धघोखा दिया। बह वस्तुतः सागरिका
आई है यह समझकर अपना प्रेमोन्नार प्रकट करने झगे। कुछ देर तक तो वह
सुनती रही किन्तु जब उसे नहीं सह्य हुआ तो उसने घृंघट हटा दी। राजा ने
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