भारत की भाषाएँ और भाषा संबंधी समस्याएं | Bharat Ki Bashaen Aur Bhasha Sambandi Samasyaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
736 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारत की भाषाएँ और भाथा संबंधी समस्याएँ ] श्
भाषा' उस प्रग्ृक्ति को बहुत कुछ नियंत्रित करने में सद्दायता
करेगी--बिकेन्द्रीकरण की चेष्टा को संयत करके केन्द्रीकरण
में यद 'राष्ट्रभाश' कायकर होगी; और दूसरा-भारत और
भारतीयों के विरोधी अनेक विदेशी जो सदेव कहा करते हैं
छि चूंकि जब भारत में बहुत सी भाषाएँ प्रचलित हैं. भारत की
भापा एक नहीं. कम से कम जब भारत में सर्वंजन-स्वोकृत एक
“रा्भापा' नहीं है, तो भारत को नेशन! या रार या एकीभूत
जनगगण नहीं कहा जा सकता, भारत की एक-राप्ता इसीलिए
असंभव वात हे, इसे भारतीयों को स्वीकार कर लेना चाहिए;
अतणएव एकता-विधायक राजशक्ति के दिसाव से अंग्रेजों का
भारत में रहना मानों स्वतःसिद्ध है; इस प्रकार के भारत-
विद्रेपी कथन का मुंहतोड़ जवाब द्वोगा अखिल भारत दारा
स्त्रीकृत एक 'राष्ट्रभापा! । हिन्दी ( हिन्दुस्तानी ) यह इप्सित
राष्ट्रभाषा दो सकती है, यह प्रस्ताव देश के सामने उपस्थित
किया गया है | इस समय हमारे देश के कितने ही राजनीत्िज्ञों
ओर बिद्वानों के मन में इस प्रश्न ने एक बढ़ा स्थान
ले लिया हे--कद्दाँ तक और किस तरह हम हिन्दी ( हिन्दु
स्तानी ) को भारत की राष्ट्रभाषा? के तोर पर प्रतिप्ठित कर
सकेंगे।
संसार के भिन्न-भिन्न देशों की बात पर विचारकर देखने से
यह सहज ही में प्रतीत होता है कि देश में बहुत सी भाषाओं
के अस्तित्व को नेशनहुड अथौत् एक-राष्ट्रीयता या एक-गणत्व
का बाधक नहीं कहा जा सकता प्रायः देखा गया हैं कि, बहु-
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