राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला | Rajsthan Puratan Granthmala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
574
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना श्र
१- तत्वेशवाय विद्यहे नारायणाय धोमहि तप्नो विष्णु' प्रचोदयात् |”
--मैप्रायणीयस अग्निचि
नारायणाय विश्वहे वासुदेवाप घीमहि तम्नो विष्णु प्रचोदयात् ।
--तैत्तिरीयारण्यक १७ प्रपा १ अनु
२-दिवाना च फषीणा चायूुराणा पूर्वजम्र ।
महादेव ४ सहम्राक्ष ७ शिवमावाहयाम्पहम ॥!
तलुरुषाय विश्यहे महादेवाय धीमहि तम्नो रुद्र प्रचोदयात् ।-मैत्राय अग्नि
३-'कात्याय ( नये) नाय विद्यहे कन्यकुमा (री) रि धीमहि तम्नो
दु (गा)गि प्रचोदयात् । - वैत्ति आर १० प्रपा १
४-तत्कराटाय विश्वहे हस्तिमुसाय धघीमहि तम्नों दन्ति प्रचोदयात् 1
“>मैत्राय अग्नि
५-्तद्भास्कराय चिघझ्हे प्रभावराय धोमहि तन्नो मानु प्रचोदयात् 1?
“-मैत्राय अग्नि
भास्कराय विश्नहे महाद्यु तिकरगाय धीर्माह तन्नो श्रादित्य प्रचोदयात्् ॥
“>तैत्ति आर १०प्र १अ
अ्रतण्व धर्मशास्त्र शौर प्रुराणसम्मत्त बेघ क्रिया-कलाप में वेदिक
त्तान्त्रिक श्रौर उमय मिश्रित पद्धति को मान्यता देना प्रमाण और युक्तिसिद्ध होने
से शास्त्रकारों को सर्वथा अभोष्ट है।
श्रीमद्भागवत में-
धयात्रावलिविधान च सर्ववापिकपर्वसु ।
वैदिको तान्त्रिकी दीक्षा सदीयक्रतघारणम् ॥
११ सके ११अ ३७ इलो,
वेदिकस्तान्त्रिको मिथ इति में श्रिविधो मख |
त्रयाणामीप्सितेनेव विधिना भा समर्चयेत् ॥7
+-११ स्क २७ अध्या ७ इलो
पद्मयुराण में--
'वेदिकस्तान्त्रिको मिश्रा श्रीविष्णोस्त्रिविधो मख ।
त्रयाणामीप्सितेनेव. विघिना हरिमचंयेतू. 0४
“-५% पाताल ख ९५ अध्या ७० इलो
इन प्रमाणवाक्यों से यह सिद्ध है कि बेदिक, तान्विक श्रौर उमयप्तमिश्चित
उपासना को ज्षास््त्र तर्क श्रौर गुक्तितगत होने से किसी प्रकार की चुनौती नही
दी जा सकती । शब्ागम श्रोर निगम के ब्राचार विचार श्रोर श्रार्प
परम्पराओ्रो को देखते हुए सामान्यतः दोनो को एकवावयता शास्त्रसमत्त
है । फ़ित्तु विशुद्ध बदिक मार्ग के अनुगमन का अ्रधिकार केवल
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