राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला | Rajsthan Puratan Granthmala

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rajsthan Puratan Granthmala  by फतह सिंह - Fatah Singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about फतह सिंह - Fatah Singh

Add Infomation AboutFatah Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रस्तावना श्र १- तत्वेशवाय विद्यहे नारायणाय धोमहि तप्नो विष्णु' प्रचोदयात्‌ |” --मैप्रायणीयस अग्निचि नारायणाय विश्वहे वासुदेवाप घीमहि तम्नो विष्णु प्रचोदयात्‌ । --तैत्तिरीयारण्यक १७ प्रपा १ अनु २-दिवाना च फषीणा चायूुराणा पूर्वजम्र । महादेव ४ सहम्राक्ष ७ शिवमावाहयाम्पहम ॥! तलुरुषाय विश्यहे महादेवाय धीमहि तम्नो रुद्र प्रचोदयात्‌ ।-मैत्राय अग्नि ३-'कात्याय ( नये) नाय विद्यहे कन्यकुमा (री) रि धीमहि तम्नो दु (गा)गि प्रचोदयात्‌ । - वैत्ति आर १० प्रपा १ ४-तत्कराटाय विश्वहे हस्तिमुसाय धघीमहि तम्नों दन्ति प्रचोदयात्‌ 1 “>मैत्राय अग्नि ५-्तद्भास्कराय चिघझ्हे प्रभावराय धोमहि तन्नो मानु प्रचोदयात्‌ 1? “-मैत्राय अग्नि भास्कराय विश्नहे महाद्यु तिकरगाय धीर्माह तन्नो श्रादित्य प्रचोदयात््‌ ॥ “>तैत्ति आर १०प्र १अ अ्रतण्व धर्मशास्त्र शौर प्रुराणसम्मत्त बेघ क्रिया-कलाप में वेदिक त्तान्त्रिक श्रौर उमय मिश्रित पद्धति को मान्यता देना प्रमाण और युक्तिसिद्ध होने से शास्त्रकारों को सर्वथा अभोष्ट है। श्रीमद्भागवत में- धयात्रावलिविधान च सर्ववापिकपर्वसु । वैदिको तान्त्रिकी दीक्षा सदीयक्रतघारणम्‌ ॥ ११ सके ११अ ३७ इलो, वेदिकस्तान्त्रिको मिथ इति में श्रिविधो मख | त्रयाणामीप्सितेनेव विधिना भा समर्चयेत्‌ ॥7 +-११ स्‍क २७ अध्या ७ इलो पद्मयुराण में-- 'वेदिकस्तान्त्रिको मिश्रा श्रीविष्णोस्त्रिविधो मख । त्रयाणामीप्सितेनेव. विघिना हरिमचंयेतू. 0४ “-५% पाताल ख ९५ अध्या ७० इलो इन प्रमाणवाक्यों से यह सिद्ध है कि बेदिक, तान्विक श्रौर उमयप्तमिश्चित उपासना को ज्षास्‍्त्र तर्क श्रौर गुक्तितगत होने से किसी प्रकार की चुनौती नही दी जा सकती । शब्ागम श्रोर निगम के ब्राचार विचार श्रोर श्रार्प परम्पराओ्रो को देखते हुए सामान्यतः दोनो को एकवावयता शास्त्रसमत्त है । फ़ित्तु विशुद्ध बदिक मार्ग के अनुगमन का अ्रधिकार केवल




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now