श्री शिवमहिम्नःस्तोत्रम् | Shri Shivmahima Stotram

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Shri Shivmahima Stotram by कशिंनद शर्मा- Kashinand Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३) कर उन्हें दाक्षिणात्यफे रूपमें स्वीकार किया है। किन्तु वथा सरित्सागर के पुप्पदन्त था कात्यायन दाक्षिणात्य नही है! तब कात्यायनस्पेण अव- तीर्ण पुष्पदन्त वात्तिककार कात्यायनसे भिन्न है-वया? यह सशय भी हो सकता है । किन्तु कथा सरित्सागरवारने स्वयं पाणिनीय सूत्र व्यास्या- कारक रूपमे पुष्पदन्तावतार कात्यायनवों माना है। अत. जन्मस्थान विषयक लेसमात्रको अन्यथा स्वीकार करना उचित होगा। क्योकि कथाये कई जन्मोको जोड जाड़कर लिखी जाती हैं । फिर कथासारित्सागर के बारेमे कहना ही वया? जो अतिविलक्षण घटनाओके वर्णनसे भरपूर है। इस अशमे महामभाष्योक्त दाक्षिणात्यत्व ही प्रामाणिक है। अनः जन्म स्थानके विधादकों छेकर कात्यायन भेद मानना अनुचित है। अतएव प्रसिद्ध व्याकरण वात्तिककार मह॒पि क्‍ात्यायन ही महिस्न स्तोत्र रचयिता हैं । यहू निश्चित होता है । वस्तुत, कात्यायन छास्रा का दक्षिण देश मे व्याप्त प्रचार ही उनके दाक्षिणात्यत्व में एक प्रमाण है जेंसे कि हमने ऊपर दिखाया। यद्यपि याशवल्क्य का आश्रम स्त्रन्द पुराणानुसार गुजरातमे था। ऐतिहासिक छोग इस पर यही कल्पना करते है कि जब याज्ञवत्क्य राजा जनक के पास मिथिला में गये तब उनका पुत्र काध्यायन वहा से दक्षिण की ओर गये होगे । परन्तु हमारी समझमे तो बात यही भाती है कि आज भी महा- राष्ट्रादिम याज्ञवल्वयप्रवरतित माध्यन्दिन शाखा का भी प्रचुर प्रचार है तथा वे लोग याज्ञवलक्य को दाक्षिणात्य होने की ही श्रद्धा रखते हैं। अतः याज्ञवल्वय दाक्षिणात्य ही रहे । गुजरातको उन्होने अपना प्रचारक्षेत्र बनाया होगा और वहा आश्रम बनाकर रहने छग्रे होंगे। अतएवं कात्याप्रन गणान्तगत वातिककार कात्यायन को महाभाध्यवारोक्त दाक्षिणात्यत्व उपपन्न है। सर्वेधापि कथासरित्सायर के-- अवदच्च श्र्द्रमौलिः कौशाम्बीत्यस्ति या महानगरी 1 तस्यां स्॒ 'पुप्पदन्‍्तों वररुचिवामा प्रिये जात्ः।॥ा




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