संस्कृत व्याकरण कौमुदी भाग - 1 | Sanskrit Vyakaran Kaumudi Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
612
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ व्यक्षन-सन्ध्रि
व्यज्लन सन्धि
(०0प्राएच्रणणर0घ्० 08 ०0080981718 )
#६6 । स्तोः, इचुना इचुः
यदि च अथवा छ परे रहे तो त् ओर द् के स्थान में लू
होता है। यथा, महत् + चक्रम--महच्चक्रम$; भवत + चरणुम्>
भवचरणम; उत् + चारणम-उच्चारणम; एतदु +चन्द्रमएडलम
न््पतबन्द्रमरडलम३ विपदु + चयः-विपश्चय; तद् +ललनमू्
तच्चलनमु; महत + छत्नमु + महच्छन्नम; भवंत् + छुलनम् ८ भच-
च्छलनम्, उत् 4 छिनत्ति--3उच्चिनत्ति, तदु + छवि: ८ तच्छवि:,
एतदू् + छाया रूएतच्छाया ।
७० | यदि ज अथवा झ परे रहे तो त् और द् के स्थान से
ज् होता है। यथा, भवत् + जीवनम्ृ-भचज्जीवनम्, उत्त + उ्वल
+उज्ज्वलः, सरित् + जलम्८सरिज्जलम्, तदु् + जन्पम-तज्जन्म,
एतदु + जननम् < एतज्जननस, विपद् + जालम -- विपज्ञालम,
महत् + कह्फनम-्महज्मब्ध्यनम,तत + कतत्कार:-तज्कनत्कार
७१। यदि ज अथवा # परे हो तो दन्त्य न् के स्थान में
आज होता है। यथा, महान् +जय: ८महाअय+; राजन +
जाग्ृहि - राजज्ञायूहि; भवान् +जीवतु-भवाश्षीचतु; उद्यन +
भड्भार:-उच्जमकड्भाए$ विस्मत् + ऋनत्कार:<वव रमञ्फनत्कार:;
गच्छुन् + झथितिज्गचछत्कणिति ।
७२। यदि पद् के अन्तस्थित तकार वा दुकार के परे तालब्य
श् रहे तो त् ओर द् के स्थान में ख और तालब्य श के स्थान
में छ (१) होता है। यथा, जगत्+शरण्य:-जगच्छुरण्य:;
( $ ) तालव्य श्र थ युक्त रहने से नहीं होता | यथा, उत्रचेतति,
उत्इचोतति |
श्र
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