संस्कृत व्याकरण कौमुदी भाग - 1 | Sanskrit Vyakaran Kaumudi Bhag - 1

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Sanskrit Vyakaran Kaumudi Bhag - 1  by शिव प्रसाद - Shiv Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ व्यक्षन-सन्ध्रि व्यज्लन सन्धि (०0प्राएच्रणणर0घ्० 08 ०0080981718 ) #६6 । स्तोः, इचुना इचुः यदि च अथवा छ परे रहे तो त्‌ ओर द्‌ के स्थान में लू होता है। यथा, महत्‌ + चक्रम--महच्चक्रम$; भवत + चरणुम्‌> भवचरणम; उत्‌ + चारणम-उच्चारणम; एतदु +चन्द्रमएडलम न्‍्पतबन्द्रमरडलम३ विपदु + चयः-विपश्चय; तद्‌ +ललनमू् तच्चलनमु; महत + छत्नमु + महच्छन्नम; भवंत्‌ + छुलनम्‌ ८ भच- च्छलनम्‌, उत्‌ 4 छिनत्ति--3उच्चिनत्ति, तदु + छवि: ८ तच्छवि:, एतदू्‌ + छाया रूएतच्छाया । ७० | यदि ज अथवा झ परे रहे तो त्‌ और द्‌ के स्थान से ज्‌ होता है। यथा, भवत्‌ + जीवनम्‌ृ-भचज्जीवनम्‌, उत्त + उ्वल +उज्ज्वलः, सरित्‌ + जलम्‌८सरिज्जलम्‌, तदु्‌ + जन्पम-तज्जन्म, एतदु + जननम्‌ < एतज्जननस, विपद्‌ + जालम -- विपज्ञालम, महत्‌ + कह्फनम-्महज्मब्ध्यनम,तत + कतत्कार:-तज्कनत्कार ७१। यदि ज अथवा # परे हो तो दन्त्य न्‌ के स्थान में आज होता है। यथा, महान्‌ +जय: ८महाअय+; राजन + जाग्ृहि - राजज्ञायूहि; भवान्‌ +जीवतु-भवाश्षीचतु; उद्यन + भड्भार:-उच्जमकड्भाए$ विस्मत्‌ + ऋनत्कार:<वव रमञ्फनत्कार:; गच्छुन्‌ + झथितिज्गचछत्कणिति । ७२। यदि पद्‌ के अन्तस्थित तकार वा दुकार के परे तालब्य श्‌ रहे तो त्‌ ओर द्‌ के स्थान में ख और तालब्य श के स्थान में छ (१) होता है। यथा, जगत्‌+शरण्य:-जगच्छुरण्य:; ( $ ) तालव्य श्र थ युक्त रहने से नहीं होता | यथा, उत्रचेतति, उत्‌इचोतति | श्र




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