श्री रामचरितमानस | Shri Ramcharit Manas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
842
श्रेणी :
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गोस्वामी तुलसीदास - Goswami Tulsidas
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हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के )
नह ह
रिया अब रहती है । इसके पाव्के समबन्यमे भी रामायणी विद्तोर्मे बहुत
मतभेद है, यहाँतक कि कई खलेंगे तो असेक चौपाईमें एक-ल-एक पाठमेद
फिल्मी संस्काणोंगे मिह्ता है | जितने पाठ्मेद इस अन्यके मिले हैं, उतने
कद्ामिंत् और किसी आदीन ग्रनयके नहीं मिलते | इससे भी इसकी सर्वोपरि
जोकग्रियता पिद्द होती है !
इसके भततिरि्त रमचरितमानस एक आशीर्वादामक ग्रन्थ है | इसके
प्रयेक्ष पक्की श्रद्गहव जे मतबत् आदर देंते हैं और इसके पठले लैबिक
पृ पासमर्पिक अनेक कार्य सिद्ध करते हैं। यही नहीं, इसका अ्द्धापर्वक पाठ
करे दशा इसमें आये हुए उपदेशोंका विचासूतक/ मनन करने एवं उनके
अबुप्तार आचएण केसे तथा इसमें वर्णित भगवानकी मधुर छीजछाओंका
बिन एवं कीर्तद करनेंसे मोक्षरुप परम पुरुपार्थ एवं उससे भी बढ़कर
भरकम प्राप्ति आसनीसे की जा सकती है | क्यों न दो, जिस ऋषकी
रचना गेख्ामी तुख्सीदासजी-जैसे अनन्य आगवद्भालके दर, जिन्होंने सगवानू
भीसीवाएगजीकी कपास उतकी दिव्य ठीलाओोंका प्रहाक्ष, अनुभव परे यधार्य
सफे पाई जिला है, राधाद् सहान् अरतीरेशइुरबीी जे हुए ता
जिसपर उन्हीं मानते सत्य शिव सुन्दरम! लिछकर अपने हाथसे सही की,
उसका इस अकाए्का जदौकिक प्रमावर कोई आश्चर्यकरी बात रहीं है। ऐसी
दाम इस अलौकिक म्रन्यक्ा जितना में प्रचार किया जायगा, जितना अधिक
पठन-पादन एड मनन-अलुशीटन छोगा, उतदा ही जगतका गदुछ होगा--
उसे तर्क मी सलेह नहीं है। वर्तमान सम तो, जब स्क हाहकार
मत हुआ है, माता संतार दु् एवं अशान्तिकी भीषण ज्वालसे जल खा है,
. तक कोनेकोनें) भारकठ गची हुई है और प्रतिदिन हजारों ग्वुष्षेंका
+ हो रहा है. करोझेअलेंकी स्पतति एकडूसेके दिनाशके हिये कर
मो जा पी है. विनय सारी शक्ति एृष्वीको झशासके रुप परिण
नमी हु है, संदारके बड़े-सेनडडे मस्तिष्क संदारके सये-नये साबनोंकों
एक व्य है, जात सुछआत्ति रे ग्रेमका प्रसार करे तथा
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