नानक वाणी | Nanak Vani

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Nanak Vani by जयराम मिश्र - Jairam Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[५ ६, 'तुखारी” रागु में एक वाणी का नाम बारह माहा? है। इसको गणना छंतों में है और इसमें १७ पउड़ियाँ हैं । १०. 'सलोक सहसकझती” में गुरु नानक देव के ४ सलोक हैं, जो १६ रागों की समाप्ति के पदचात्‌ रखे गए हैं । ११, गुरु नातक जी के जो 'सलोक' वारों की पउड़ियों के साथ रखने से बच गए थे वे 'सलोक” वारां ते बधीक” श्ीषंक के अंतगंत रखे गए हैं। इनकी संख्या ३२ है । ये सबसे भ्रन्त में रखे गए हैं । ; न्ानक-वाणी' में इसी प्रकार वाणियों का क्रम है। राजनीतिक स्थिति कदाचित्‌ संत कवियों में गुरु नानक देव ही ऐसे कवि हैं, जिनकी देश की दुदंशा के ऊपर पैनी दृष्टि थी । उन्होंने देश की राजनीतिक दुर्दशा का माभिक चित्रण किया है। उस समय देश्ष में मुसलमानों का राज्य पूर्ण रूप से स्थापित हो चुका था । उदार से उदार मुसलमान शासक में धर्मान्धता कूट-कुट कर भरी थी। 'तारीख-ए-दाऊदी” के लेखक ने सिकन्दर लोदी की मुक्त-कंठ से प्रशंसा की है, “सुल्तान सिकन्दर अत्यन्त यशस्वी शासक था। उसका स्वभाव श्रत्यन्त उदार था। वह अ्रपनी उदारता, कीत्ति और नम्नता के लिए प्रसिद्ध था। उसे तड़क- भड़क, बनाव-श्यृंगार में कोई रुचि नहीं थी । धामिंक और गुणी व्यक्तियों से वह सम्बन्ध रखता था ।” किन्तु श्री बनर्जी के अनुसार सिकन्‍्दर की यह न्यायप्रियता झर उदारता संकीणंता से युक्त थी । उसको यह न्यामप्रियवा और उदारता अपने सहघर्मियों तक ही सीमित थी *। भाई गुरुदास जी ने भी इस बात का संकेत किया है कि कार्जियों में रिश्वत का बोल- बाला था ।* ग्रुरु नानक के शब्दों में तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिति का अनुमान कीजिए--- “कलियुग में लोग कुत्ते के मुंह वाले हो गए हैं और उनकी खाद्यवस्तु मुरदे का माँस हो गई है । अर्थात्‌ इस युग में लोग कुत्तों के समान लालची हो गये हैं भौर रिश्वत तथा बेईमानी से पेसे खाते हैं। वे कूठ बोल-बोल कर भूकते हैं ।”?रै गुरु नानक देव ने तत्कालीन राजाओं और उनके कर्मचारियों का चित्रण इस भाँति किया है-- ४ राजे सीह मुकदम कुते | जाइ जगाइन बेठे सुते ॥। चाकर नह॒दा पाइन्हि घाउ । रतु पितु कुतिहो चटि जाहु ॥ जिथे जीआं होसी सार। नकीं वढ़ीं लाइतबार ॥४९ प्र्थात्‌, 'इस समय राजागग सिंह के समान ( हिंसक ) तथा चौघरी कुत्ते के समान ( लालची हो गए हैं ) । वे सोती हुई प्रजा को जगाकर ( उसका मांस भक्षण कर रहे हैं )। ( राजाओं के ) नौकर अपने तीज्र नाखूनों से घाव करते हैं शोर लोगों का खून कृत्तों (मुकहमों) १. इवोल्यूझन आफ्..द खालसा, भाग १, इंदुमूषण बनजीं, पृष्ठ २९ २. भाई गुरु दास की बार, वार १, पउड़ी रे० ३. “कल्नि होई कुते पुष्टीं खाजु होझा मु रदारु”, 'नानक वाणी', सार की वार, सखोक २१. 9. 'नानक-बाणी', मखार की वार, सलोक १६.




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