प्रकृति सौन्दर्य | Prakriti Saundarya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथमो5ड्: १३
राजा--(अंगुल्या दशयन) सखे ! पश्य पश्य---
'जितषडसद्रीणां सुन्द्रीणां द्रीणां
पुरत इद् मुनीनां बद्धपद्मासनानाम् ।
नियमितकरणानां ध्यायतां देवमन्तः
किमपि किमपि पुण्य सण्डल राजतीदम ॥ २५ ॥
चन्द्रवर्ण:--- (किखिंद् विमानावनतिं रूपयन) देव साम्प्रतमावां पर्वत-
नितम्बस्थलीमुपयुपरि गच्छाव:, तदनुभूयतां परमसुखातिशयः ।
तथाहि--
स्थले स्थले5मूस्स्थलपद्मपडःक्तयो,
लसन्तद्य रू खच्छजलछ पदे पदे ।
क्षण क्षण निमेलशीतलो 5निरः
सुगन्धवीचीरुचिरान्तरान्तरा ॥ १६॥
से
राजाः--( अंगुलीसे दिखाता हुआ ) मित्र ! देखो इधर सुन्दर गुफाओंके प्राह्न-
णमें कामक्रोध आदि छ रिपुओंको जीतनेवाले पवित्र जितेन्द्रिय मुनिमण्डल
पद्मासन लगा कर अंतःकरणमें ब्रह्मका ध्यान करते हुए किसी अकथनीय
कान्तिको धारण कर रहे हैं ॥ १५॥
चन्द्रवणेः--( कुछ विमान नीचे उतारता हुओ )
राजन्! इस समय हम लोग पर्व॑तराज के ऊँचे ऊँचे शिखरों के मध्यभाग में
से जा रहे हैं, तो खूब आनन्द रूटिए ।
स्थान स्थानमें गुलाबोंकी पंक्तियाँ, और पग पग पर निर्मल झरनें अतिशय
सोंदये बढ़ा रहे हैं ॥ १६ ॥
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