कादम्बरी | Kadambari

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Kadambari by श्री हरिश्चन्द्र - Shri Harishchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भीकिथन संस्कृत से परिचित विरला ही कोई ऐसा ध्यक्ति होगा, जिसने बाणभट्ट का नाम न सुना हो। काव्यनाटक-क्षेत्र में जिस तरह कालिदास स्-श्रेष्ठ माने जाते हैं, वेसे ही गद्यकाव्य-क्षेत्र मे बाण भी अद्वितीय कछाकार हैं। उनकी सर्वोत्तम रचना कादम्बरी है, जो एक उच्चकोटि का उपन्यास है। ऐसा कोई भी विश्वविद्यालय, विद्यापीठ अथवा शिक्षा-सस्था न होगी, जहाँ बाण की कादम्बरी पाठय-पुस्तक के रूप मे नियत न द्ो। कहीं सारी कादम्बरी है, कही उसका पूर्वार्ध है, कही झुकनासोपदेश तक है, तो कहीं कथामुख तक अथवा कही इसके चुने हुए स्थल हैं--अभिप्राय यह कि कसी न किसी रूप मे कादम्बरी पाठ्यक्रम मे नियत होती अवश्य है। कहना न होगा कि कादम्बरी एक शोली-प्रधान उपन्यास है, जिसमे वर्णनों को अधिक महत्व दिया जाता है, घटनी को कम । यही कारण है कि बाण की कादस्बरी अपने वर्णनों के लिए प्रसिद्ध है। कई स्थलो मे ऐसे ढम्बे-ऊम्बे समास-बहुर, पौराणिक सकेतों से भरे और भलककारों का ताँता लिये हुए वाक्य चल पढते हैं कि साधारण सस्क्ृतज्ञ को अर्थ समझने में कठिनाई आ जाती है। प्रसिद्ध दीकाकार श्रीकाले मद्दोदय ने कादम्बरी के सम्बन्ध मे ठीक ही कहा है -- बोधेक-गम्या रसभाव-पू0्णों जीर्णापि निर्त्य धरतचारुषणों। अचिन्तनीय-प्रभवाषि निर्जरेदुरावबोधा किम्रु बोधविह्क॒वेः ॥ पाठकों की इस कठिनाई को दूर करने के किए विद्वानों ने कादम्बरी पर कितनी दी दीकार्ये कर रखी हैं। कुछ टीकाओं के नाम हैं--कादम्बरीपदाथ्थदर्पण, विषमपदविद्वति, आमोद, चषक इत्यादि । वे अधिकतर पूर्वार्ध तक हैं। हरिदास, शिवराम और घनश्याम ने भी कादम्बरी पर टीकायें कर रखी हैं, पर इनमें अधिकतर इतनी सक्षिप्त हैं कि उनसे साधारण पाठकों---विशेषत छात्रों को भच्छी तरह कषर्थ समझने से अपेक्षित सहायता नहीं मिल सकती । कादम्बरी के स्व सिद्ध टीकाकार जेन-पड़ित श्रीसानुचन्द्र हें, परन्तु उन्होंने पूर्वांड तक ही टीका की है। उत्तराध॑ भाग की टीका उनके शिष्य सिद्धचन्द्र ने की है। इन्हीं भानुचन्द्र की टीका हमने इस सस्करण में अपनायी है। प्रस्तुत सस्करण हमने अभी पूर्वार्थ तक ही निकाला




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