नैषधकाव्य | Naishadhkavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(पृधकाव्य | २३
ज्जूहा ॥ पुण्यके पालहें ॥ दीनके यालहें | सीयके हेतहें। नयन-
सो भेतहें | ३८ ॥ सब्वेया ॥ पुण्यनिके जल पघोरिषने घनसार मिले
मृगमेह दहावत )। कंजानिके किथों पुंजनिस्लों नसते शिख अंगसबे
सियरावत ॥ बोरत स्वाहु सुधारसमें बसुधा महँ सो द्विज धन्य
कहावत ॥ जापर नेक दया दहृग आवत तातनके त्यताय नशावत॥ ३९॥
सुलक्षण ॥ अति ललित लंबित कानहें ॥ जहँ सुनत मन्त्र विधान हैं ॥
चहुँ श्रुतिन जनु युग तनुधरे || मुनि मुखाह सेवतु हैं खरे॥ ४० ॥ शुभ
वंश उच्नत नातिका ॥ तपकी ध्वजा झति हॉसिका ॥ जहेँ छुटत पवन सुद्दा
सुह्दे ॥ तिल फूल के तन ज्रामु है ॥ ४ १॥ दोहा ॥ इडा पिंगला सुषुमणा
नारिनको रंग भोनु।| पूरक कुंभक रेचकनि, मिलि रमती रसरोनु॥ ०२॥
लीलाछंद || कमछ सों मुझुक्यात आनन पूरि दंत मयूष | स्वच्छता
हियकी मनो प्रगटी पवित्र मयूष ।| स्वणकों उपवीत राजित कंध रंघित
बाम है| सकल इंद्रिय जनु सुचंचल रोकिबेकी दाम है॥।०३॥ हृढ़पद॥
बाहु बंध कर मूलमें आछावलिराजे ॥ छूपटे फणि श्रीखंडकी रूतिका
जाने राजे ॥ कुंड जुरच्यो सुहोमको जनु नाभि सोहाई ॥ रोमावली
मिसि धूमकी रेखा चढ्ि आई ॥ ४४ ॥ धोती सोहत बैत है जनु जोन्ह
सोहाई ॥ मनहु जरा दुगुनी करी तनुकी छवि छाहइ ॥ कंधों कदि छॉ-
न्हात हैं गंगाजल ठादे ॥ किधों चरण नख अंसुके पठस्रों ब्ृति
ठाढे ॥४५ ॥ दोहा ॥ सकल भ्रप श्िर मुकुट मणि, मिछत ओप सर
सात || चरण कम मुकुतावढी, छसत नखनकी पाँत ॥ ४६ ॥
घनाक्षरी ॥ विकसत सुंदर अशोकतर वेदिकापेमृहुरू सु दर्भ नयो
आसनु सँवारयो है ॥ तापर विराजत दमन ऋषिराज आस पात्त ऋषि-
राजनकों मंडल सुधारयों है ॥ सनक सनंदनसे विद्वित परम तत्त्व
नरम कठोर वेनयाके विबवारयों है ॥ देखतही मुनिनको जन्म फल ढ्ो
भूष उमद्यो उद्धि उर आनंद में पारयो है ॥ ४७ ॥ दोहा ॥ फठिक
माल कोपीन पठ, दंड कमंडठु चारु ॥ आनि सलग्रुणको बस्यो, सु खन-
पावत परिवारु ॥ ४८ ॥ आति दुबलतनहूँ बव्यों, झछक पुँज परकाश ॥
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सेवन हित जनु ब्रतिनि मिल्ि, करयो शरीर निवास ॥४९॥ तिभ्ंगी ॥ से
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