नैषधकाव्य | Naishadhkavya

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Naishadhkavya by गुमान मिश्र - Guman Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(पृधकाव्य | २३ ज्जूहा ॥ पुण्यके पालहें ॥ दीनके यालहें | सीयके हेतहें। नयन- सो भेतहें | ३८ ॥ सब्वेया ॥ पुण्यनिके जल पघोरिषने घनसार मिले मृगमेह दहावत )। कंजानिके किथों पुंजनिस्लों नसते शिख अंगसबे सियरावत ॥ बोरत स्वाहु सुधारसमें बसुधा महँ सो द्विज धन्य कहावत ॥ जापर नेक दया दहृग आवत तातनके त्यताय नशावत॥ ३९॥ सुलक्षण ॥ अति ललित लंबित कानहें ॥ जहँ सुनत मन्त्र विधान हैं ॥ चहुँ श्रुतिन जनु युग तनुधरे || मुनि मुखाह सेवतु हैं खरे॥ ४० ॥ शुभ वंश उच्नत नातिका ॥ तपकी ध्वजा झति हॉसिका ॥ जहेँ छुटत पवन सुद्दा सुह्दे ॥ तिल फूल के तन ज्रामु है ॥ ४ १॥ दोहा ॥ इडा पिंगला सुषुमणा नारिनको रंग भोनु।| पूरक कुंभक रेचकनि, मिलि रमती रसरोनु॥ ०२॥ लीलाछंद || कमछ सों मुझुक्यात आनन पूरि दंत मयूष | स्वच्छता हियकी मनो प्रगटी पवित्र मयूष ।| स्वणकों उपवीत राजित कंध रंघित बाम है| सकल इंद्रिय जनु सुचंचल रोकिबेकी दाम है॥।०३॥ हृढ़पद॥ बाहु बंध कर मूलमें आछावलिराजे ॥ छूपटे फणि श्रीखंडकी रूतिका जाने राजे ॥ कुंड जुरच्यो सुहोमको जनु नाभि सोहाई ॥ रोमावली मिसि धूमकी रेखा चढ्ि आई ॥ ४४ ॥ धोती सोहत बैत है जनु जोन्ह सोहाई ॥ मनहु जरा दुगुनी करी तनुकी छवि छाहइ ॥ कंधों कदि छॉ- न्हात हैं गंगाजल ठादे ॥ किधों चरण नख अंसुके पठस्रों ब्ृति ठाढे ॥४५ ॥ दोहा ॥ सकल भ्रप श्िर मुकुट मणि, मिछत ओप सर सात || चरण कम मुकुतावढी, छसत नखनकी पाँत ॥ ४६ ॥ घनाक्षरी ॥ विकसत सुंदर अशोकतर वेदिकापेमृहुरू सु दर्भ नयो आसनु सँवारयो है ॥ तापर विराजत दमन ऋषिराज आस पात्त ऋषि- राजनकों मंडल सुधारयों है ॥ सनक सनंदनसे विद्वित परम तत्त्व नरम कठोर वेनयाके विबवारयों है ॥ देखतही मुनिनको जन्म फल ढ्ो भूष उमद्यो उद्धि उर आनंद में पारयो है ॥ ४७ ॥ दोहा ॥ फठिक माल कोपीन पठ, दंड कमंडठु चारु ॥ आनि सलग्रुणको बस्यो, सु खन- पावत परिवारु ॥ ४८ ॥ आति दुबलतनहूँ बव्यों, झछक पुँज परकाश ॥ 0 के... कवि सेवन हित जनु ब्रतिनि मिल्ि, करयो शरीर निवास ॥४९॥ तिभ्ंगी ॥ से




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