राष्ट्र और राज्य | Rashtr Aur Rajya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1004 KB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लक्िनि वश विवशता हैं कि राजनेता उस दिशा वी तयारी
को रोक “ही सस्ते हें और नई दिया सास नही सकते हैं ?
भय स ब्राण की उहेँ वहद अ्ावश्यता है बहुत कुछ रचनात्मक
ग्राम उनके सामने है। झॉति की वे साँस चाहते हैं कि उन
कामा को तरफ योय लिया जा सके । सबके मन में प्रपस दटा के
तिये उन्नति पी बडी-बडी योजनाए हैं, युद्ध वा श्रातक दले भर
उन गोजाओ को हाथ म लिया जाय । लेकिन पूरी इच्छा रखते
भी यदि यह नहीं द्वो पाता है तो वही न कही हमार
विचार-ख्यवहार मे गहरी विवश्ञता धर किये वठी हैं। नहीं
तो ब्यों हैं का जो नहीं चाहते उधर चलना पडता है,
भ्रोर जो चाहते हैं उधर एक कदम भो नहीं रसा जा
सकता है।
विश्व-व्यवस्था ये विचार भौर व्यवहार वी इकाई प्राज राष्ट्र-
राज्य है। प्र्यात राज्य-कीद्रत और राज्य-परिचालित गण्ट्रीय
समाज | इसने भतिरिक्त भोर किसी तरह वे व्यवस्यित समाज
पी बल्पना हमारे पास नहीं है। आानन््तदर्गी तत्वन ब्रयवा
पत्थन शीत कवि यो छोड दें तो राज्य नियथरा वे श्रभाव म॑
माना हमारी झासा के झाग व्यवस्थाहीन श्रराजक्ता वा चित्र
उपग्यित हो पाता है वि जहा मयादा रहेगी सही श्रौर पता
गुसी ऐैलने सब जयगी। या मापस न बहा भौर टूसरे मसापिया
ने भी बहा तेविन एस झापत श्रेणी मुक्त समाज वी बत्पना
बा यथाय मे उतारन थी दिशा मे ज्ञो नौ धाग बढाया वह़या
तो कव्रिन्लसर घित्रद रह गया नहीं तो “से सा मही रया
समाष्य बर दिया गमा ।
स्यी7
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