पालि साहित्य का इतिहास | Pali Sahity Ka Itihas

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Pali Sahity Ka Itihas by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बविवय-प्रबेद श दिया । पर बुद्ध कौ शियन॑ंडसी में ममब कोसस झुद प्रबस्ती प्रौर सास्थार प्रदेश के शोय थे भौर बब उन सौगों से शुद्धबबनों का प्रयतौ भयतौ माषा में पाठ करना प्रारम्भ कर दिया तो सूकर्तों की मापा में फेर-बदशल का सप्मिवेश हुप्रा । कुछ पिप्पों का यह बात छत्की प्रौर उरहोंने प्राघीत उाहित्पिक मापा में दुडरुअनों को सुरक्षित करने कौ बात सोबी घौर इसके लिए बुद्ध से सिबेदन किया। बुद्ध से उन्हें ऐसा करने से मता किया झौर ऐसा करते का हसके दर्ड से शश्शनौय एक प्रपराष करार दिया । पर बुद्ध गिर्वाण के तीन-चार प्रतारिदियों के बाद यह प्लाये दिन की प्रदस बदस पर्मबरों का भदविकर प्रदौत होने शमी । उनमें से कुछ सोगों ले बुद्बबनों को प्राचोन मापा का ही प्रपताया पौर भ्रागे यशासंमव प्रयस्‍्त किया कि इसमें गुछ्ठ रहोगदल गे होगे पाद । दूसरे प्रकार के शिप्यों से हंस भ्रविक स्थायी संस्कृश में कर दिया भौर दौसरे प्रकारबालों न परबर्ती भाषा में उसे सुरक्षित करने का प्रयास किया । पहले प्रकार में सिह के स्पदिएगादी घममर्ों को पथ्ना होती है । य सोम मागपी कौ सबसे बही बि ेपताएँ--/स” की जगह “गा” “रे की जयह “ण शोर “रा की जगह स' को सहसाम्दियां पहने छोड चुके है. ठो भी कहते हैं-- *फुमारे बर्म-प्रश्प मु मागमी भाषा में ।” इम प्रकार स्‍दद्ि रदादी जिपिटक हम जिस मापा में उपशब्ध है, उसी को पालि क नाम से पमिहित किया जाता है पान्ति पिटक प्राज स डड़ हजार बर्ष पहचे झौर बुदनिर्धाण से प्रापा हजार बर्ष दाद प्राचार्य बुडधपाप से बुद्बचनों के बारे में खिला पा--प्रयम पंगीति में मंगासित प्रमबा भर्मपापित सब मिलाकर--(१) दा प्राठिमाक्ष (मिल्ु 3 के समा मिक्नुगी-्रातिमाप्त) दो बिमद्ध (मिस्तु-विमक्ू तपा मद्ठ) बीस लरबद (स्कर्मक) तथा सोलह परिष्रार (इस सबसे पा पे खाना न्‍ (स्करपक ) ह्‌ ( (२) घृत्तपिटक (सूत्रपिटकू) है--वमग्मजास पध्ादि ३४ सुत्तों का छंएह रीबम्बाय मुखपरियाय घ्ादि १४२ सुरूरे बा संप्रह सस्फिसशिदाय प्रोषतरण प्रादि ७७६२ सुर्तो का संप्रह संपुलतिश्वाय वित्तररियादान




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