विद्या ज्ञान प्रकाश | Vidya Gyaan Prakash
श्रेणी : पाठ्यपुस्तक / Textbook
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.91 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीगणेशाय नमः 1
विद्याज्ञानप्रकाश घारंख |
दोहा ।
औवछभसुतसूं विनति: कृपा करइ करतार । गोविंदूजुण
गायन करूं; चित सन हिय्दे धार ॥ 9 ॥ संगरजेसाणा झुभ
वसो; रावल दैरीशाल । विद्याज्ञानप्रकाशकूं, कथियों सथुशकाक
॥ २ ॥ श्रीकृष्णहि नित रटतहूं, एक सुक्तिके काज । विन दरो सब
सुख करो रखो हमारी लाज ॥ ३ ॥ ज्ञान बिना विदा नहीं
विद्या दिन नहिं उद्धि । ुद्धि बिना क्द्धी नहीं; कद्धि बिना सह्िं
वृद्धि ॥ ४ ॥ जो विधाइं चित रे; दिव दिन दूणी थाय । जूं वरते
त्येँ नित चढ़े, करे विदेश सहाय ॥ <« ॥ गणपति सरसुति सुमिरि
के, कर विद्या अभ्यास । विद्याज्ञानप्रकाशकूं; कथियों सथुरा-
॥ ६ ॥ वीरमाद ध्वज विदितहै; सातद्वीप नवखंड । दुह-
दमन सब दीसकों; प्ूरणहार प्रचंड ॥ ७ ॥ तिनके अतिप्रिय
मारुती; होतमये जन भाव । करे सहाय सब देवकी; किये
असुरनकी हान ॥ ८ ॥ चाइतहूँ कुछ चित्तमें; वर्णन अति
गुणयूढ । सुनत पढतही पुरूषकी,; मिटत सकल मतिं सूढ ॥ ९ ॥
विद्यान्नान प्रकाशते; मिटिहै सबकी पीर । जाको झुण वर्णन करूँ,
बुद्धी दे ध्वजवीर ॥ १० ॥ बालयुद्धिके कारणे, बहुत अका-
शा होत । याके पढ़त रु सुननसों; बाढत ज्ञान बहोत ॥ ११.॥
ज्ञानी ज्ञान विचार के; याकूं हिरदे धार । याहीते सब होतहै,
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