विद्या ज्ञान प्रकाश | Vidya Gyaan Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीगणेशाय नमः 1 विद्याज्ञानप्रकाश घारंख | दोहा । औवछभसुतसूं विनति: कृपा करइ करतार । गोविंदूजुण गायन करूं; चित सन हिय्दे धार ॥ 9 ॥ संगरजेसाणा झुभ वसो; रावल दैरीशाल । विद्याज्ञानप्रकाशकूं, कथियों सथुशकाक ॥ २ ॥ श्रीकृष्णहि नित रटतहूं, एक सुक्तिके काज । विन दरो सब सुख करो रखो हमारी लाज ॥ ३ ॥ ज्ञान बिना विदा नहीं विद्या दिन नहिं उद्धि । ुद्धि बिना क्द्धी नहीं; कद्धि बिना सह्िं वृद्धि ॥ ४ ॥ जो विधाइं चित रे; दिव दिन दूणी थाय । जूं वरते त्येँ नित चढ़े, करे विदेश सहाय ॥ <« ॥ गणपति सरसुति सुमिरि के, कर विद्या अभ्यास । विद्याज्ञानप्रकाशकूं; कथियों सथुरा- ॥ ६ ॥ वीरमाद ध्वज विदितहै; सातद्वीप नवखंड । दुह- दमन सब दीसकों; प्ूरणहार प्रचंड ॥ ७ ॥ तिनके अतिप्रिय मारुती; होतमये जन भाव । करे सहाय सब देवकी; किये असुरनकी हान ॥ ८ ॥ चाइतहूँ कुछ चित्तमें; वर्णन अति गुणयूढ । सुनत पढतही पुरूषकी,; मिटत सकल मतिं सूढ ॥ ९ ॥ विद्यान्नान प्रकाशते; मिटिहै सबकी पीर । जाको झुण वर्णन करूँ, बुद्धी दे ध्वजवीर ॥ १० ॥ बालयुद्धिके कारणे, बहुत अका- शा होत । याके पढ़त रु सुननसों; बाढत ज्ञान बहोत ॥ ११.॥ ज्ञानी ज्ञान विचार के; याकूं हिरदे धार । याहीते सब होतहै,




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