मानवता | Manavata

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Manavata by प्रवीण विजय जी - Pravin Vijay Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१९) यही जीयनफी सच्ची।विपात्ति और एमरण यहीं सच्ची सपात्ति है । ७ .# ,< चाद रखो “आशा णत॒ त़ है और जायु मया दित-( परिमित)) है +,आशाका सट्दा तर्भी सरता महीं।अत) अपनी मयादित, ,आायुद्वारा ससारवो सयादित घनानेका प्रयत्न कर छो। डर > श्र याद रपों-आप अन्य लागोंकी थदे'यड्टे उपदेश दुनेमे अष्छे पॉडित हों और उपदेश देनेफी प्रति “पर चिंता किया फरत हों डतनी ही साप्रधानी उस ९ उपदेशानुसार अपने ।जीयनफो-यनानेमें रखो तो ' सश्गतिकी ओर, फही दुर मह्दी धल्कि अपनी ही मुद्ढीमें है । रू 3 २ )० याद रसो--जिस , विपयमें तुम स्थयु निष्णांत ६ (सन्न ध्थर० न शे, उसके प़ारमें तुम्हारी सलाद 7 विल्कुछ निरुषयोगी होनेसे भूल करफे भी. जैला




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