मानवता | Manavata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
720 KB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१९)
यही जीयनफी सच्ची।विपात्ति और एमरण यहीं
सच्ची सपात्ति है ।
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चाद रखो “आशा णत॒ त़ है और जायु मया
दित-( परिमित)) है +,आशाका सट्दा तर्भी सरता
महीं।अत) अपनी मयादित, ,आायुद्वारा ससारवो
सयादित घनानेका प्रयत्न कर छो।
डर > श्र
याद रपों-आप अन्य लागोंकी थदे'यड्टे उपदेश
दुनेमे अष्छे पॉडित हों और उपदेश देनेफी प्रति
“पर चिंता किया फरत हों डतनी ही साप्रधानी उस
९ उपदेशानुसार अपने ।जीयनफो-यनानेमें रखो तो
' सश्गतिकी ओर, फही दुर मह्दी धल्कि अपनी ही
मुद्ढीमें है ।
रू 3 २
)० याद रसो--जिस , विपयमें तुम स्थयु निष्णांत
६ (सन्न ध्थर० न शे, उसके प़ारमें तुम्हारी सलाद
7 विल्कुछ निरुषयोगी होनेसे भूल करफे भी. जैला
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