आचार्य क्षेमेन्द्र | Achary Kshemendra

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Achary Kshemendra  by मनोहरलाल गौड़ - Manoharlal Gaud

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(०) इसके ऋठिरिक्त विषय के अमुसार शैसी का नियमन करते हुए पक दूक्रे स्पक्ष पर आान॑द॒वर्धन से स्पष्ट रूप से ससगत ओचित्य का प्रतिपादुन किया है । इसका कइना दे छि 'पिपय सम्दस्वी धऋ्रौचिस्य मी हौक्ी का निसंत्रण करना दै। भिम्न भिन्न प्रकार के कार्यों में चह मिश्न-मिक्ष प्रछार कौ होटी हे। छिस गय सें छम्दादि बम कोई सियम मही दोठा वर्शों मी वह भोजिस्य शेक्दी का मिमामक बनता है अपना पो कश्ना चाहिये कि श्रेष्ठ रचना में सर्बत्र रसगठ ओदित्य का समाभयण दोठा हे । विपय के कारण अ्मीचिस्य में कमी कुछ मेद कया लाता दे। अन्द में इस प्रसंग छा सागंश देते हुए भाषापे ने फिर क्या है कि अनोचित्य के अविरिक्त रसमंग दोने का और कोई कारण मद्दी है। झोजित्य का अनुसरस कएनाही रस योजसा का परस श्द्स्प है * इसने छः प्रकार के कोचिए्पों का वर्णन किया है --रसोबिस्प, अकद्वकारी चिस्प, गुण्ीभिस्य, संघटणौबिस्प, प्रबग्पोबजित्य एवं रीस्पौ चिस्प । इनसें से एछ-पुक का परिचय इस प्रद्धर है -- रतौवित्य-रेसके नियामस सिद्धास्द १० हैं, रस को मुख्य प्रति पाय बनाने के छिए-- (१) राय भोए उसके झर्य का नियोजन झोजिस्म पूर्ण हो। (२) छुमू, विरू,, मत्मय, वचन, कारक, काप्न, किंग, समास, आदि का प्रयोग उचित दो । (३) प्रबस्ध कास्प में संधि, संष्पम, घटा शादि छा प्रयोग रघाजुकूत शो । (४) विरोधी रस के भंग विमायादि का बन सह्दी करना । (४) पिरेपी दो था भनेक रसों का ए% स्व्ष में प्रदेश महों बरना चाहिये। (६) गीस वस्तु, पटला, पात्र उथा बातायरण का इतसा पिस्दृत बर्णल मद्दी करमा चाहिये खिससे मुख्यरस दब बय । (७) भंगरस कर अंगीएठ का भापस में सम्द्ध समान अनुपाद से ह। अक्न कम तथा अंगी अधिक । १ ध्यम्पाधोड़ ३। ७-९ धाधिये




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