कामायनी की टीका | Kamayani Ki Tika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कासायती : एक अध्ययन श्छ
अनुसार प्रसाद “सर्व खल्विद ब्रह्म: के समर्थक हैँ | “शरीर त्वहं शम्भो/' के
अनुसार वे प्रकृति को पुरुष का शरीर मानते हैं। प्रसोदजों शैवागमी थे ।
अतएव वे शक्ति के दो रूप पानते थे--वह आनन्दरूपिणी है तथ्य स्पन्दन-
रूपिणी भी | आनन्द रूप ने वह जिव में लीन रहती है तंथा स्पन्दन रूप भे
प्रकृति को चेतना सम्पन्न पाते है। कवि का अनुभव है कि प्रकृति के खण्ड-खण्ड
में वह अखण्ड समाया हुआ है, अत: सभी उसके प्रति आकृप्ट है और उसकी
महानता को नतमस्तक हो स्वीकार करते है--- ह
“घहानचील इस परम व्योम में पश्रन्तरिक्ष में ज्योतिर्मान,
ग्रह नक्षत्र और विद्यरकण किसका करते है सन्धानं ।
छिप जाते है श्रौर निकलते आकर्षण में खि्े हुए
तृण दीरुघ लहलहे हो रहे किसके रख में लिखे हुए ।
सिर नोदा कर किसकी सत्ता सब स्वीकार यहां
सदा मौन हो प्रदान करते जिसका वह अस्तित्व कहाँ।
कामायनी के प्रकृति-चित्रण प्रें प्रसादजी ने मानव-भावनाओं का प्रकति के
साथ पूर्ण तादात्न््य किया हैं। जब किसी व्यक्ति का वर्णन करते है, 'तो उसमे
उन्हे मेघ, बिजली, वक्ष-लता, वन, पर्वत, कमल, मकरनन््द प्रादि दिलाई देने
लगते हैं और जब प्रकृति का चित्रण करते हैं तो उसमे उन्हे प्रभात मी लाली
में रमणी का हास्य और पुष्प के मकरन्द में मतुप्य का विकास दिख ३ ०1
हैं। इस प्रकार की भाग्व्यजना के लिए कवि ने चित्रमयी लाक्षणिक भाप्ा का
प्रयोग किया है । उदाहरण के लिए, हिमालय की हँसी, वनस्पतियाँ अ्लक्षायी,
लहूरियां अँगड़ाई, पराम कीड़ा, सूखे तरु फिर मुस्काये, लतिका घृघट भ्रादि
कवि की इसी भावना के द्योतक है । कामायनी मे प्रकृति ओर पुरुष का पूर्ण क्षभेद
हृष्टिगत होता है ।
इसके श्रतिरिक्त कामायनी के प्रकृति-चित्रण की एक विशेषता और है
इसमे देशगत, जातियत तथा कालगत सभी विशेषताएँ पाई जाती हैं । प्राकक्षिक
विभूतियों के कारण ही भारत-भूमि आदि काल से ही गौरवान्वित रही है| ।
हमारे ऋषि-मह॒पियो की प्रवत्ति और निवत्ति की पीठिका प्रकति ही थी ।
कामायनी में भी मनु के जीवन मे प्रकृति इसी क्रम से आकर मिलती है । मसले
के चिन्तन के क्षण तथा क्रीड़ा-काल प्रकति के प्राँगण में ही व्यतीत होते है
तथा उन्हें निर्वाण की पराप्ति भी प्रकृति की पुनीत गोद में ही होती है । कामायनी
साध्य समरसताजन्य आनन्द की प्राप्ति भी प्रकति के प्रांगण मे ही होती है ।
प्रन्क्ष ७--काम्रायनी को एंतिहासिकता पर विचार कीजिए
उत्तर--बिना कथानक के किसी महाकाव्य की कल्पना असम्भव हो है।
कथानक ऐतिहासिक या काल्पनिक किसी भी प्रकार का हो सकता हैं ।
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