यह दिखता है जो सागर | Yah Dikhata Hai Jo Sagar

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Yah Dikhata Hai Jo Sagar by वत्सला पाण्डेय - Vatsala Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कभी देखना यू कभी चाहोगे तो दिखलाऊेंगी अपना बाल मन जिसमे रहतीं हरदम नन्‍हीं ननन्‍हीं खुशियों छोटे-छोटे स्वप्न अनगिनत जिज्ञासाएँ कभी देखा तुमने ? चिडिया का अपने बच्चे को दाना खिलाना देखा कभी तुमने ? माँ के प्यार की गरमाहट मे किसी शिशु का सोना बस ऐसे ही मेरा मन खाता है दाना और सोता है आत्मा के ऑचल मे रहता है उसकी पनाह मे मेरे पास तो वो आता-जाता रहता है अपनी मीठी बातो स्वप्निल ऑखो से मोहित करता है पर - मेरे पास नही रहता है क्योकि वो बडा नहीं होना चाहता है वो बडा नहीं होना चाहता है यह दिखता है जो सागर / 27




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