श्री शीघ्र बोध [भाग १७] | Shri Shighr Bodh [Bhag 17]
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
540
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ ४ ॥
॥ श्री रत्नप्रभसरीखर सद्गुरुभ्पो नमः ॥
शीघध्रवोध या थोकजा प्रबन्ध.
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भाग १७वा.
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देवो ब्नेक भवाजिताउजित महा पाप प्रदीपानलो |
देव! सिद्धिवपू विशाल हृदयालकार हारोपमः ||
देवोड््टादशदोप सिंधुरधटा निर्भेद पंचाननों ।
प्ानां विदधातु वांछित फल, श्री वीतरागों जिनः ॥१॥
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ओऔी उपासक दशांग सूत्र अध्ययन १.
( आनंद श्रावकाधिकार )
चोथे आरेके अन्तिम समयकी वात है कि इस भारतभमीकाः
आपनी ऊंची २ ध्वजा पताकाओं और झुन्दर प्रसादके मनोहर
'शिंखरॉसे गगनमंडलकों चुम्बन करता हुवा अनेक प्रकारके धर,
घान्य ओर मनृष्ियोंके परिवारसे समृद्ध ऐसा चाणीय ग्राम नामक्ाः
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