श्री शीघ्र बोध [भाग १७] | Shri Shighr Bodh [Bhag 17]

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Shri Shighr Bodh [Bhag 17] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ ४ ॥ ॥ श्री रत्नप्रभसरीखर सद्गुरुभ्पो नमः ॥ शीघध्रवोध या थोकजा प्रबन्ध. -“- '“५७)3#-- भाग १७वा. “7 2281९---- देवो ब्नेक भवाजिताउजित महा पाप प्रदीपानलो | देव! सिद्धिवपू विशाल हृदयालकार हारोपमः || देवोड््टादशदोप सिंधुरधटा निर्भेद पंचाननों । प्ानां विदधातु वांछित फल, श्री वीतरागों जिनः ॥१॥ “ ै03#- ओऔी उपासक दशांग सूत्र अध्ययन १. ( आनंद श्रावकाधिकार ) चोथे आरेके अन्तिम समयकी वात है कि इस भारतभमीकाः आपनी ऊंची २ ध्वजा पताकाओं और झुन्दर प्रसादके मनोहर 'शिंखरॉसे गगनमंडलकों चुम्बन करता हुवा अनेक प्रकारके धर, घान्य ओर मनृष्ियोंके परिवारसे समृद्ध ऐसा चाणीय ग्राम नामक्ाः




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