भोजप्रबन्धः | Bhojprabandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
291
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर ज्ञोजप्रबन्धः ।
कंठस्था या भवेद्िया सा प्रकाशया सदा बुधे॥
या गुरो पुस्तके विद्या तया मूठः प्रवायते ॥8॥
कंठम स्थिव विद्या हो तो विदजनोंने सदा मकाश
करनी चाहिसे । जो गुरु विपें और पुस्तक विष विद्या
है उस विद्यासे मद जन निवारण किया जाता है ( रोका
जाता है) ॥ ४॥
इति राजानं प्राह। ततो राजापि विप्रस्याहंभा-
पमुद्रया चमत्तकृतां तद्ाता श॒त्वा भस्माक जन्मत
आरभ्येतत्क्षणपय्यतत यद्न्मयाचारते यवत्कृत तत्सव
वद्सि यदि भवान्सर्वज्ञ एवेत्युवाच। ततो ब्राह्मणोपि
राज्ञा यब॒त्कृतं तत्सवंसु॒वाच गूठव्यापारमापि । तो
राजापि सर्वाण्यप्यभिज्ञानानि ज्ञाला तुतोप। पुनश्च .
पंचपट्पदानि गत्वा पाद्योः पतित्वा इंद्रनीरुपुष्परा-
गमरकतवेडूयेसाचितासिहाक्षने उपवेश्य राजा ग्राह ॥
. ऐसे राजाको बोला। तंब राजाभी बाह्मणकी अहंका-
रपनेकी मुद्राते चमत्कार की हुई तिस्त वावोकी सुनके ऐसे
कहता भया कि हमारा जन्मसे लेके अबवक मेंने जो २
आवरण कियाहे जो २ काम किया है तिस संपूर्णकी यदि
आप कहते हैं वो सर्वज्ञही (संपूर्णवेत्ताही ) हो। इससे अ-
नंतर वह ब्राह्मणन्ती राजाने जो २किया था तिस संपूर्ण गुप्त
व्यवहारकोीभी कहता भया । फिर राजाभी अपिज्ञानोंकी
( ब्राह्मणकी सर्वज्ञवाबों ) जानके प्रसन्न होता भ्या । फिर
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