श्री विष्णु - महायज्ञ रत्नपुर स्मारक - ग्रन्थ | Shri Vishnu-mahayagy Ratnapur Smarak-granth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
235
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[१०]
चाहिए। तो दूसरा कहता हैं, नहीं यह ठीक नहीं है, वह खुदी एक से प्रारंभ
होकर अमावस्या के दिन पूरा होता है, तभी तो अमावस्या के दिन पश्चांग में
३० छिखा जाता ह। तो अब प्रदइन यह उठता हे कि विक्रम संचत का मास
पूर्णिमांत होता है कि अमान्त ?
अच्छा, संवत् का आरंभ कार्तिक से हो या चेत्र से, महीना पूर्णिमान्त हो या
अमानत; पर यद्द तो पता चले कि जो संवत् लिखा जाता दें चह उतने वर्ष पृर्ण
हो जाने का सूचक है या उसके आरंभ होने का ? छीजिए, इस विपय में भी भिन्न
भिन्न मत हैं। एक झमेला ओर है, यह संचत् सर्देव विक्रम संवत् ही कहलाता
रहा है कि आर कुछ ? पता चलता है कि हजार डेढ़ हज़ार वर्षों से तो अवश्य
किसी न किसी रूप में विक्रम का नाम इस संबत् के लाथ जुड़ा हुआ है। किन्तु
उससे पूर्व यह मालव संचत् कहलाता था। कहीं कहीं यह हृत संचत् भी कहा
गया है। मालव ओर रूत का उब्छेख तो साथ साथ मिलता है, पर वहाँ विक्रम
का उब्डेख नहीं मिलता। तो भी इसमें तो सन्देह्द नहीं है कि वह विक्रम संबत्
ही है जिसका आरम्म ईस्वी से ५७ वर्ष पूर्व हुआ था |
चलिए ऐतिहासिकजी, अब तो आप थक गये होंगे। जितनी उब्दी सीची
चातों का पता आपको जांच पइताछ से रूगा उन सब को पिटारे मे भरकर घर
के चलिए ओर फुरसखत से उनका निर्णय करते रहिए । ऐतिहासिक ने धर भाकर
अपने उस पिठारे को खोछा और बडे परिश्रम पृचक उनमें से ये तथ्य रूपी रत्न
निकाले।--
(१) जो विऋ्रमसंवत् प्रचलित है उसका प्रारम्भ ईस्वी सन् से ५७ वर्ष पूर्व
>
पाया जाता है ।
(२) छठी झताव्दि से पूवे के लेखों में इस संबत् के साथ विक्रम नाम
नहीं पाया जाता, किन्तु 'माछूव गण स्थिति ', 'मालवबगण आम्नाय, या ' मारूच
पूर्वा ', आदि पद् भिन्न भिन्न स्थानों पर पाये जाते हैं जिनसे अनुमान होता है कि
इस संवत् रूपी कार गणना का उपयोग मालवगणों ने किया था। मारूवों से
भी पूर्व पदली-दूसरी दावाब्दि में पश्चिमोत्तर भारत के सिथियन और पार्थियन
राजाओं ने भी इसी संबंत् का बिना किसी नामनिर्देश के उपयोग किया था।
संभव है कि इन्हीं राजाओं ने यह काछू-गणना प्रारंभ की हो # | पीछे मालवों
ने इसकी चचरादि या कारतिकादि, एवं असान्त अथवा पूर्णिमान्त संबंधी किसी एक
पद्धति को अपना लिया हो और वही पद्धति 'क्रत ' नाम से प्रसिद्ध हुई हो +।
ह देखो केम्ब्रिज हिस्दी आफ इंडिया, ब्हा ५ पृ. ५७१
+ देखो डा. भंडारकर का छेख “पुफ९ एए191718 1109” भंडारकर कृमोमरेशन
ब्हाल्यूम १९१७ में प्रकाशित ।
ते
User Reviews
No Reviews | Add Yours...