ऋग्वेद: | Vedo Ka Bhasantar Surati Ka Bodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
756
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३
है। ऋग्वेद से प्राथना, यजुर्वेद मे यज्ञसंबंधी उपयुक्त मंत्र, सामवेद से परमेश्वर का यशोगा-
यन और अथवेवेद मे धमज्ञान का विवेचन किया है ।
फ्रान्स या जसेनी का हिन्दुस्थान से कोई संबंध नही है| उन देशो से यह आशा
नहीं की जा सकती कि वे भारत के आच(र विचार साहित्य और विद्वानों की प्रशसा
करे | उसके अतिरिक्त भारत को वर्तमान काल भे प्रसुखत्व भी नहीं प्राप्त है | इसेस यह
संभव है कि. अन्य देशवासी हिन्दुओ को तिरस्कारदृष्टि से देख। किन्तु ऐसी दशा होने
पर भी उन देशा के विचारवान् पुरुषो ने हिन्दुओं के अनेक ग्रन्थो का वहुत आदर
किया है | इससे स्पष्ट हे ओर यह प्रत्येक नि पक्षपाती मनुष्य फो मानना हा।गा कि उन
प्रंथो मे अवश्य कोई विलक्षण ओज ओर विशेषता है। वेदो का पता जब जर्मन पंडितो
को लगा और उनकी दृष्टि इन पर पड़ी, तो वेदों के निस्गेसीन्दय को देख वे मुग्ध हो
गये । उनमे से कितने ही तो यहां तक मोहित हुए कि उन्होने आद्योपान्त वेदों का अध्य-
यन कर डाला । किसीको वेदो की भाषा पसंद आई. किसीको उनकी सादी और सरल
रचना भाई, उनके काव्य पर कोई लह्दु हो गया, कोई उनमे तत्वज्ञान पाकर आनंदित
हुआ। इन सबमे रोट नामक विद्वान् ने बहुत परिश्रम पूर्वक वेदों का परिशीलन किया और
बेदविषयक साहित्य चिरस्थायी करनेके अभिग्नराय से उन्होने अन्य कई विद्वाने। की सहायता
स अपना सुप्रसिद्ध काश बना डाला | हो सकता है कि अथेविपयमे कुछ मत भेद हो.
परन्तु इसमे सनन््देह नहीं कि यह कोश वडी आस्था और अत्यन्त परिश्रम से
तय्यार किया गया ।
अवोचीन शोधको का मत है कि वेद फस से कम दस हजार वर्ष पुराने हे ।
इतने प्राचीन कालके ग्रंथ की साषा अवश्य ही अव्यवास्थित, वेजोड और भद्दी होनी
चाहिये. परन्तु वेदी! भे यह बात नही है । वल्कि उनका काव्य सरल, सुवोध ओर मधुर
है | कवित्ताका सम्पूर्ण सोन्दय वेदों मे कूट कूट कर भरा हुआ है ।
1 आह
वेटो मे अक्तरो के ऊपर और नाचे रेखा मारकर कुछ स्वर दिखाये हैं। उन्हींके
पनुसर वेदपाठी लोग अपनी गढन या हाथ हिलाकर मन्त्रो का उच्चारण करते है | घेटो
की यह वात भी ध्यान देने योग्य है। भापण करनेसे शब्दों के कुछ विवन्तित अक्षरों पर जोर
देकर उच्चारण करनेका प्रचार बहुतसी भाषाओं मे है। अक्षरा की ध्वनि की इस विशेषता को
हो स्वर कहते हैं । जब तक वेदों का अधिक प्रचार था तब तक उनके अनुसार म्वरो-
ज्चारण के नियस मालूम थे । किन्तु संस्कृत का प्रचार बन्द होनेके बाद उसके स्वरों
या भी लोप हो गया। वेदों से स्व॒र तीन प्रकार के ह-उदात्त, अनुदान और स्वग्ति |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...