नेमिनाथ महाकाव्यम् | Neminath Mahakavyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २४ )
जो केसव पत्चहि पड्चेहि, पच्चद्भः पणमिय जादवेहि।
सिय पच्चम नाण आराहगाण, सो हरउ दुरिय जिण सेवगांण ॥७॥
1 चस्तु ॥
पढम नाणहि पढ़म नाणहि भेय अडवीस ।
चउदभेय सुय॑स्स तह अवहि नाण छब्मेय निम्मल ।
भणपज्जव नाण पुण दुच्चि भेय इग भेय केवल ।
एवं पत्च पयार मिह जेण परूनिय नाण ।
सो चदउ विरि नेमि जिण मज़ूलमय अभिहाण ॥5॥।
॥ भास ॥।
पचासव तक्कर हरण, दिणयर जिम दीपति।
घइ!दिदुठठ सिरि नेमि,जिण, हियय कमल विहसत ॥६॥
प सुट्दइ पच्च पयार मह, अन्तराय अन्धियार।
पञ्चाणुत्तर भाव सवि, पयडिय हुई जगसार 11१०६
,भवपुरि वसता सामि हुय, राग दोस मिलिएंहि।
रयणदिवंस सतावियउ एु, पश्चिदिय च.रेंहि 11११॥
सिद्धि नयरि दिउ वास ' हिव, केरि पसाउ जिणराउ 4
पञ्चम गइ कामिणि रमण, वर पतच्चाणण ताय ॥१२॥
( कलश )
सिवादेवि वदण पाव खडण चरण तारण पच्घलो $
हय कम्म रिउ बल सबल केवल, नाण लोयण [नम्मलो 4
सिरि नाणपच्रसि दिवसि थुणिइ, नेमिताह जिणेससे।
आ्उ सिद्धि सपइ देव जपइ, कीर्तत्त राय समगोह से ॥1१३॥
4 इति श्री नेमिनाथ स्तवनस् 4
अमयनेन ग्रस्यालय प्रति स० ६६३५ पत्र-१ १७ वी शताब्दी लि०७
प० हीरराज लिखत । १६ वी क्षती के गग्रुटका रत्न मे भी है ।
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