शान्ति-सोपान | Shanti-sopan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संरूप-सस्वोधेन। १७
कता य। कगणां साक्ता, तृत्फछाना सू एवं
ब।हरन्तरुपायाभ्यां तपा पक्तवमवाह ॥ १ ०॥
शंथ--जो आत्मा बाह्य ' शत्र मित्र आदि थे अतरंग राग
द्वेप आदि कोर्रणों से शानांवरणादिक कमो का' कर्ता थ॑
उनके सुख दुःखादि फलों का भोक्ता है, 'घही आत्मा बाह्य
स्री; पुत्र, धन, धान्यादि का त्याग करने से क्र्मा'' के कतों
भोक्तापने फे व्यवहार से मुक्ते भी हैं। अंथात् जो संसार दशा ,
में कमों का कर्ता घ भोक्ता है घंही सुक्तेदशा में कर्मो' का
कर्ता भोक्ता नहीं भी है ॥ (०8... '* ह
. संदंहंशिज्षानचीरित्रयुपायः संवातर्छव्धये । के शा
बच याधाल्यता स्थत्यमातमनों दर्शन मत ॥ १ १॥
यंथावद्ड सतुनिणातिः सम्यस्जञन पदापवतू-।
वृत्खावद्यबसायातकधण्वत्ामत एथक (१२॥ ,
दशनेज्ञानप्यायप त्तरातरजावछए ।
जैस्थरमाल्म्बन-यद्वा गाध्यस्थ्य-सुखदुखया!। १३॥
जाता व्याज्मेकाएह, सुख दुख ने चांपर/।
इतांद अावताहाब्य, चा रजमथवापरक ॥ १४॥
, अर्थ--सम्यग्द्शन सम्ब्शान और संम्यकचारित्र .ये
तीनों अपने शुद्ध आत्मखरुप की आ्राप्ति अर्थात् :संसारसे झुक्त
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