प्रमेयरत्नमाला | Prameyaratnamala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वर्गीय पंडित जयचंदजी विरचितेर
हिन्दी प्रसेयरत्नमाला ।
दोहा |
श्रीमत वीरजिनेश रवि तम-अज्ञान नशाय |
शिवपथ वरतायो जगति वंदों में तसु पाय ॥ १ ॥
माणिकनंदिमुनीशकृत ग्रेथ परीक्षाद्वार ।
करूं वचनिका तासकी लूघुटीका अज्लुसार ॥ २॥
ऐसे मगल्पूर्वक प्रतिज्ञा करी | अब परीक्षामुंखनाम सस्कृतसूत्रबध
माणिक्यनंदिआचार्यकृत ग्रंथ है ताकी बडी टीका तो प्रमेयकमलमात्तेंड-
नाम है सो प्रभाचन्द्र आचार्यक्रत है, तामे तो विशेष करि वर्णन है । बहुरि
छोटी टीका प्रमेयरत्नमाला है सो लघु अनन्तवीयय आचार्यक्नत है ताकै अनु-
सार मै देशभाषामय वचनिका छिखू हू | तामै बुद्धिकी मंदतातै तथा
प्रमादते कह्न हीनाविक अर्थ लिख्या होय तो पंडितजन हास्य मत
करियो, मूलगप्रथ देखि शुद्ध करछीजियो |
इहा कोई कहे जो प्रमाणके प्रकरण तौ सस्क्ृतवचनरूपही चाहिये,
देशभाषामय वचनतैं हीनाविक कहना वणै तो विपर्यय होनेते बडा
दोप छागै | ताका समाधान--जो यह तौ सत्य है देशभापाके वचन
अपम्रग बहुत है तहा अर्थ विपर्ययरूपभी भासे परन्तु कालदोपतैं सस्क्-
तके पढनेवाले बिरले हैं, अर केई हैं ते भी शुरुसंप्रदायके विच्छेद
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