श्री अनुभव जैन हुकमप्रकाश | Shree Anubhav Jain Hukam Prakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
519
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
दिपे पक्की हृढता बिना एवे स्थले ध्यान थई३ इाके नहीं
सवत १९१६-१७ नी सालमा वशोदरा, मीआगाम, सी
नोर, आमोद, जं॑बुसर, अने नरुच विगेरे झहेरोमां जव्यजनोने
प्रतिबोध दे? सुरत पधास्त्रा.
आा बखते अमठावादथी झुरत सुधीना प्रदेशमा तो जैन
दद्ननी घणीज न्यनता थएली हती, कारण के आगला जूल
सी राज्यायिकारीलना जलमो बड़े लोका घर्मणी चूकी पोनानी
मात मिश्षकतोना रक्षणमां तथा पोताना ज्रण पापएमांज मं
च्या रहेता. तेथी केटलाक माह्या परुषो घर्मना कारणनेज धर्म
मानीने वेठेला, अने केटलाक माह्मामा गणाता अक्लानी जनों
आचारनेज धर्म मानीने वेठेला, वली केटलाक तो जन नाम
घरावतां उठता पर धर्मथी तदन अजाए अने हीनाचारी हता
तेबालने सत्यधर्मनी श्रद्य कराववी ए काम कं$ सहेल नहोतुं
परंतु जेना हूृदयमा परोपकार बुद्धि रमी रही ठे, एवा हुकुममु
निज्ञी महाराजे मदा कट सहन करी विहारमा ग्लानीपएँ न पाम
ता ग्रामानुग्राम बिचरी क्वान दान देवामा कचादहय राखी नहीं
परोपकार चुहिना प्रज्नाववड़े जव्यजनोने हितकारक जेनधर्मनी
स्थाध्दाद शैली ए करी युक्त वीतराग परमात्माना वचनोन यथार्थ
अवलोकन रूप पूर्वाचायोंनी शौलीघारा क्रमानुगत धर्मदेशना
देह बोधनी ठृद्धि करी, जेवी घणा जव्यजनोन अझान दर थय्य॑
केटलाक महानिंदनीक आचारवालाल पण प्रशस्त आाचारवाला
वन््या, केटलाकने थर्मनुं यथार्थ रदस्प समज़ार्य
संबत २०१७ नी साकमा सुरत शरदेरना संघना आग्रहधी
चोमासु सुरत शहेरमाज रहा. त्या दररोज छपाशञ्रये व्याख्यानमा
घएं माणस नेगु यतुं, महाराजनी देशना साज्नली जव्यजनो
शातरसभी छवित थ३ जता, + अस्ृत्तमय देशनाथी आखुं,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...