आधुनिक राजस्थानी साहित्य एक शताब्दी | Aadhunik Rajasthasni Sahity Ek Shatabdi

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Aadhunik Rajasthani Sahity Ek Shatabdi by नरोत्तमदास - Narottam Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मूमेमस्स की अर्जा करते समय बार-बार मह दुहरराया थाता णहा है कि पुर्यमस्‍्त में तत्काशीत कर्मियों की मौसिग्रशा का मष्द कर दियाघा। जब सूर्यमह्स का प्रभाव कम पड तो शाबल्थाती काब्य मै भपना छाल प्रस्विस्थ बतापा। कहा जा सकता है कि सूममस्स ते जिस चेतना को जिस प्ामर््द से संभाला बह भाते बाले कई बर्षो तक भ्रम्य कंमिरमों द्वार चाहती शामर्प्य से सही प्ंभाशी ब्रा सघबी | यह कोई प्राशयप को बात महीं अर्योकि सूर्यमस्छ दैसे प्रतिभा के परी किसी भी भाषा को छरसहा प्ले प्राप्त हीं हो पाते । मद्दारूबि सूर्य मम्क -- अम्दीदान के पुत्र महाकबि पूर्पमस्स बि* सं* १५७२ में जरमे प्रौर वि सं» ११२४ में स्थर्मगासी हुए । उस्हूँ स्व॒तरश प्रदरुदि के प्रबक्चढ भौर पिपक्कड स्पप्टमापी प्लौर सिडर स्वमाशसिद्ध कृषि झौर प्रकाध्ड पंडित के हप में पाइ किमा जाता है। मे संतीत-मर्मश् प्रोर सोकोश्तर प्रतिमा कै प्रधिकारी बे। आरणोतिय स्शामिमान झौर स्वार्त॑श्प प्रमं उसकी मस तस में जरा बा' । थे पट्भापाज्ञानी धौर स्पाकरण स्यथाय ण्योतिष प्रादि बिपयों के पारगत थे । उ्हे बीररत का सर्वश्रेष्ठ भोर शिगप्त का भम्पतम कवि मामा मया है। छनुभूति की पस्यता सार्थों डी गंभीरता पौर प्रमिभ्यक्ति कौ प्राश्वशता उसके माब्य के ध्ाषइपक गुण हैं। पुद रखभूमि सतौत्य प्रौर बीरीरमाए के बिविश प्रसंगों पर उसको सेखसी बार भर बसी है। उमकी प्रतिमा को गिश्वकनि रबीस् से तुसनीय माममे मैं प्राफ़ोचकों की महत्वाकांशा प्रदूषित अहौह गहीं होती। डा» मेनारिमा सूरंमस्स को परिवर्ततकाश का सबसे शडा कषि मानते हैं घौर सं ११५०० से सं* १६३० तक के कास को 'पुर्यमस्‍्थ-युत' का माम देते हैं। पाँच बर्ष की झायु में ही दिधारंस करके सूपमस्‍्श ते 'प्रमरकोप के तौनों ही काप्ड तीन दिल में ही टीका सहित हटठाप्र कर प्रपसै युरू को सुगा दिये । सिखा गया है गि दस वर्ष की उप्र मैं ही उस्होते 'रामरणाट' काम्प की रबता पूरी की जिसमैं समके भ्राभपदाता बृदी के तत्काशीन मरे म्ज्ाराय 'धमसिह के घिकार भौर बतशाजा का बर्णत है । मह्ादति सूर्यमस्स मिश्रण बिरदित इत्ब क। परिक्षय इस प्रकार है--- १ बएजाल्‍छकर (पिगल) २ बीरमहसई प्रपूर्ण (डिमस) वात शिलास. 8 यू धरम बतदबंत शिशास ३4४ ३ शा» मोतौछाज मैसारिपा गृत्पुसश्त १६२७ दागते २ औरणतर्सा (संपारणोय) व वश देह 1




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