गृह्य सूत्र - संग्रह | Grihsutram Sangrah

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Grihsutram Sangrah by श्री राम शर्मा आचार्य - Sri Ram Sharma Aachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मृभिकी मानव-सम्यता का जो स्वरूप हम आज देख रहे है, वहे सौ-पवचास अथवा हजार-दो हजार वर्षों के भीतर विकसित नही हुआ है । धर्म, नंतिकता, परमार्थ, चरित्र सम्बन्धी जो उच्च सिद्धान्त और नियम हमको इस समय दिखाई पड रहे है, वे एक दिन में उत्पन्न नहीं हो गये है। इतिहासज्ञो के सतानुसार तो किसी समय अधिकाश मनुष्य ऐसी ही दश्षा में थे जिसे जगली पशुओ से कुछ ही उन्‍नत कहा जा सकता है । अब भी ससार के अनेक भागो से ऐसे लोगो का अभाव नहीं है जिनको नरभक्षी' कहा जाता है ॥ पर धीरे धीरे महान उपदेशको और ऋषि मुनियों की धम-प्रेरणा से लोगो की मनो- भूमि का सस्कार, सुधार होता गया और बह उन्नति करते- करते 'आत्मवत्तु सब भूत्तेचु' (समस्त प्राणी हमारे आत्मीय ही है) के सर्वोच्च मन्तब्य तक जा पहुँचा । यह आश्चर्यजनक परिवत्तेन सहज मे नही हो गया। इसके लिये धर्म के मार्गयदर्शको और उतके अनुयायिओ को बहुत अधिक आत्मत्याग, श्रस ओर सलग्नता का परिचय देना पडा, त्तब कही जाकर मनुष्य निम्न स्तर के विचारो तथा कार्या से विरत होकर धर्मानुकुल ओर उत्थानकारी नियमो पर चलने मे समर्थ हो सका॥1 इस परिवतंन मे गृह्य-सूत्रो' ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान किया है+ यद्यपि आज हमको इन शृद्य सूत्रो' की उपयोगिता का अनुभव बहुत कम हो पता है, पर इनके भीतर हमारी बर्तमान सा्राजिक प्रथा और रीति-रिवाजो का बीज निहित है। जो समाज जीवित होगा, उसमे देश काल के परिवर्तन के साथ साथ




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