जैनागमों में परमात्मवाद | Jainagmo Main Parmatmavad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
49 MB
कुल पष्ठ :
1160
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आत्माराम जी महाराज - Aatmaram Ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
नाोसमकरण
प्रस्तुत आगम का नाम व्याख्यात्नज्ञप्ति है। प्रब्नोत्तर की शैली मे लिखा जाने वाला ग्रन्थ
व्यास्याप्रज्नप्ति कहलाता है। समवायाग और नन्दी के अनुसार प्रस्तुत आगम में छत्तीस हजार
प्रब्नो का व्याकरण है! । तत्त्तार्ववात्तिक, पट्खण्डागम और कसायपाहुड के अनुसार प्रस्तुत आगम
में साठ हजार प्रश्नों का व्याकरण है ।
प्रस्तुत आगम का वर्तमान आकार अन्य आगमों की अपेक्षा अधिक विज्ञाल है। इसमे
विपयवस्तु की विविवता हैं। सम्भवत विव्वविद्या की कोई भी ऐसी शाखा नहीं होगी जिसकी
इसमे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में चर्चा न हो | उक्त दष्टिकोण से इस आगम के प्रति अत्यन्त श्रद्धा
का भाव्र रहा । फलत इसवो नाम के साथ 'भगवती' विशेषपण जुड गया, जैसे--भगवती व्याख्या-
प्रज्ञप्ति । अनेक थताब्दियो पूर्व भगवती' विशेषण न रहकर स्वतन्त्र नाम हो गया। वर्तमान में
व्याख्याप्रज्ञप्ति की अपेक्षा भगवती” नाम अधिक प्रचलित है ।
विषय-वस्तु
प्रस्तुत आगम के विपय के सम्बन्ध में अनेक सूचनाएं मिलती है। समवायाग में वताया
गया है कि अनेकों देवों, राजो और राजपियों ने भगवान् से विविध प्रकार के प्रइन पूछे और
भगवान् ने विस्तार से उनका उत्तर दिया इसमें स्वसमय, परसमय, जीव, अजीव, लोक और
अलोक व्याख्यात है' । आचार्य अकलक के अनुसार प्रस्तुत आगम में जीव है या नही है---इस प्रकार
के अनेक प्रइन निरूपित हैं' | आचार्य वीरसेन के अनुसार प्रस्तुत आगम में प्रश्नोत्तरो के साथ-
साथ छियानवे हजार छिन्नच्छेद नयों' से ज्ञापनीय शुभ और अशुभ का वर्णन है' ।
समवाओ, सूत्र ६३, नदी, सूत्र ८५ ।
तत्त्वाथ॑वात्तिक १1२०, पट्खण्डागम १, पृ० १०१, कसायपाहुंड १, पु० १२५ ।
समवाओ , सूत्र ६३ ।
तत्त्वा्थंवातिक ११२० ।
जिस व्याख्या पद्धति मे प्रत्येक श्तोक और सूत्र की स्वतन्त्र, दूसरे एलोको भौर सुत्नो से निरपेक्ष व्याख्या
की जाती है उस व्याख्यापद्धति का नाम छिन्नच्छेद नय है।
६ कसायपाहुड भाग १, पु० १२५।
ल््द 6 (0 0 -०
User Reviews
No Reviews | Add Yours...