अंगविजा | Angavijja

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Angavijja by मुनि पुण्य विजय - Muni Punya Vijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रस्तावना श्रे विविभ चेष्टाएँ, जैसे छि नेठना, पर्यस्तिका, आतर्श; अपश्रय-जाडम्यन ठेका देना, खड़ा रखना, देखना, देंसना, प्रप्त फरमा, समष्कार करना, सझछाप, श्रागमत, रुदम, परिदेवन, कख्दन, पतन, अम्युत्पान, मिर्गमन, अचरायित, नम्मा३ छेता, चुम्बन, जआर्िन, सेषित भादि, इन घेष्टाश्ोकों अनेखयनेफ भेद प्रकारोंम बर्णय मौ किया है। सापमें मनुष्पक्रे जीवनमें होनेवाओ अन्‍्यान्य क्रिया-चेटाओंका वर्णन एब उनके एकार्थ कोंका मो निर्देश इस म्रममे दि है। इससे सामान्यतया प्राकुठ वाध्मयमें सिम क्रियापदोंका उत्ठेश-सम्र नहीं इजा दे उनका सम्रद इस प्रपमं विपुछतासे हुआ है, भो प्रात मापाकी समृद्धि इरष्टिसे यड़े मदत्तकय है [ देशा तीसरा परिरिष्ठ ]। साससतिक दृष्टिसे इस प्यमें मनुष्प, तिर्येच शर्षात्‌ पशच-पक्षि-सुद्मस्तु, देष-देवी और वनस्पतिके साथ सम्बन्ध रखनेवाठे कितमे हौ पदार्थ वर्णित हैं [ देखा परिष्ठिप्न ४ ]। इस भ्रम्यमें मनुष्यके साथ सम्बन्ध रखमेशाडे अनेक पदार्ष, जैसे कि--चतुर्मर्ण विमाग, नाति विमाग/ गाप्न, योनि-अटक, सगपण सम्बस्थ, कम-पजरा स्यापार, स्पान अधिकार, णाधिपर्य, याम-वादन, धगर-प्राम-मडग द्ाणमुणादि प्रादेशिक विमाग, घर प्रासादादिके स्थान मिमाग, प्राचौम सिछे, माण्डोपकरण, मामन, माउ्प, रस सुणए आरादि पेष पदार्ष, वद्र, शाच्छादम, अठंकार, बरिविष 6कारके तैक, शपश्रय-टेका देमेफे साधम, रत-सुरत ऋडाफे प्रफार, दोहद, रोग, ठत्सव, वादिन्न, जायुप, मदौ, पर्गत, लमिय, वर्ण-रंग, मंडछ, मक्षत्र, काझ-वेशा, म्याक्ण बिसाग, इन सबके नामादिका डिपुछ सप्रह है। तिर्यग्विमागक् चतुप्पद परिसर्प, जरूचर, छर्प, मस्त्य, क्षुत्रमन्त बादिके मामादिका मी विस्तृत सम है | बनल्पति विमागके एक्ष पृष्प, फसे, गुल्‍्म, छता लादिके मार्मोका सप्रह भौ जब दे। देब जोर दंधियों। नाम मो काफ़ी सक्ष्माम हैं। इस प्रकार मनुष्य, तिर्येत्, गमस्पति जादिके साथ सम्बन्न रखनेषाे जिम पदार्षोका निर्देश इस पंपमें मिछ्सा हे, वह मारवोय सस्कृति ए. सम्पताकौ इश्सि अतिमइत्वका हे। भास्चर्यकी वात ता यह है कि प्रंबकार आचायने इस शासमें एतद्रिपपक अणाडिका- जुसार इक्ष, जाति थोर उम्र कग सिफ़, मांडापकरण, माजन, मांजन, पेपहम्प जामरण, बश्च, आर्टादन, शापग, लासन, जायुध, प्वृद्वनस्तु भादि जैसे नड एव भ्ुव्रचेतम पदारपोंका मी इस प्रस्पम पुनखी-मपुसक विभागमें बिमकछ किपा है। इस प्रबम प्िर्फ इन चीजओोके नाम मात्र द्लौ मिछत हैं, ऐसा नह्वी किस्तु कह चौओंफ्रे वर्णन और छनके एकापेक मो मिझ्ते हैं। जिन घौर्बोक्े मार्मोका पठा सस्कृत प्राइव काश थादिसे न चछ्े, ऐसे नामोंका प्रता इस प्रन्वके सन्दमोंवा देखनेसे चरू जाता है । इस भंपमें हारौरके अह्न, एव मनुष्य-तियंच-पमस्पति-देव-देवी बगेरइके साथ संबध रखनेबाठे जिन-ज्रिम चदाोंके शामोक्ग सप्रद्ध है बढ तदिपपक बिद्वानेके छिये शति मद्य्ण सेम्र६ वन गाता है । इस संप्रहका मिन्न मिन्त इंशिस गहराइप्यक देखा जायगा सो यड़े मइत््वके कद सार्मोका ठपा दिपर्योकां पता चछ जआयगा | जैसे कि---क्षप्रप राजाओंफे सिक्कोका उलट इस प्रन्वमें खचपकों मामसे पाया जाता दे [ देखा ज० ९. इस्ेक १८६ )। प्रात्रौम छुटाइमसे कितने ई पैन आयागपट मोछ् हैं, किए मी आयाग शब्दका उत्डक्ष प्रषाग जैन ग्रम्पोते कड्दी देखनेगे नहा भाता है, फिस्दुइस मस्षमें हुस शम्दका उस्टेश पाया जाता है [ देखा पृष्ठ १९२ ११८ )। सदितमइछा सलाम, जा भ्रावस्ती नगतीका प्राचौण साम या उसपर मी उल्झख ईस ॒प्रस्प्में अ«० २ नि १६३ में नजर जाता है । इनके नतिरिक्त आाजोषर, रृप्ष्टारफ बादि अमेझ दास्द एज सलाप्रारिका सप्रद-उपपोग इस प्र्वर्मे हुआ है जो सशाप्रोंक्े लिये मदत््वका है 1




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