षड्दर्शनसमुच्चय | Saddarsanasamuccaya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
570
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-का० १ ६४] मजद्भलम्। ३
सहर्शनस्तम् । अनेन च तदीयदर्शनस्य त्रिभुवनपुज्यतामशिदधान: श्रोवर्धमानस्थ त्रिभुवत्तविभो:
सुतरां त्रिभवनपुज्यतां व्यतक्तीति पूजातिशायं प्राचीकटत् ।
६ ३, तथा जयति रागह्वेषादिशत्रनिति जिनस्तम्, अनेनापायापगसातिशयमुदबीभवत् ।
( ४. तथा स्वातू-क्रथचित् सर्वदर्शनसंसतसद्भूतवस्त्वंशानां सिथः सापेक्षतया बदन
स्याद्राद” , सदसन्नित्यानित्पसासान्यविशेषासिलाप्यानशिलाप्योभयात्मानेकान्त ' इत्पर्थ. । ननु कये
सर्वदर्शताना परस्परविरुद्धभाषिणासभीष्ठा वस्त्वंश्ा: के सदभूता. संभवेयु. प्रेषां सिय. सापेक्षतया
स्पाद्वाद, सत्प्रवाद' स्पादिति चेत् , उच्यते- यद्यपि दर्शनातनि तिजनिजमतभेदेन परस्पर विरोध॑
भजन्ते तथापि तेरुच्यमाना: सन्ति तेषपि बल्त्वंशा ये मिय- सापेक्षा: सन्तः समीचीनतामझ्चन्ति ।
तथा हि-सौगतेरनित्यत्वम्, साख्यनित्यत्वम्, नेयायिकेवेंगेषिकेइ्च परस्परविविकते नित्यानित्यत्वे,
सदसत्वे, सामान्यविशेषी च, सोमासके: स्थाच्छन्दवज भिन्नाभिन्ने, नित्यानित्यत्वे, सदसदद्यो,
सामाव्यविशेषो, शब्दस्प नित्यत्व॑ च, कफेश्चित् काल्स्वभावनियतिकर्मपुरुषादीनि जगत्कारणानि,
जनदर्भनकी जग-पुज्यताके द्वारा उसके प्ररूपक वर्षमान सगवानूको त्रिभुवत्त पृज्वताका स्पष्ट सूचन
किया गया है। इससे भगवानूका पूजातिशय प्रकट हो जाता है
( ३. जिन--जो राग-द्ेप आदि समस्त अन्त घत्रुओको जीन लेता है वह 'जिन है।इस
विभपणसे वीर भगवानका अपायापगम अपाय 5 दोपका, अपगम 5८ निरसन नामक अतिमय प्रत्रद
होता है ।
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