पुण्यास्त्रव कथाकोश | Punyastrav Kathakosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ पृजाफलम्‌ ४ # न प्वविदेहे सीतानदीदक्षिखतट्यां मद्भलावतोबिषये रत्नसंचयपुरेशो वज्सेनो देवी शा गा जद प्रासादोपरिसभूमो सवीजनपरिवृता दिव्यासने उपविष्टा दिशसव- लोकयन्ती जिनेन्द्रालयात्‌ पठित्वा निर्मतसुकुमारबालकान्‌विलोक्य 'सम कदा पुत्रों भविष्यति' इति विचिन्त्य दुःखेनाश्र पातं कुर्दंती स्थिता। कयाचित्सख्या भुपततेनिवेदितम्‌--“देव, जयावती देवी रुदती तिष्ठति' इति श्रुत्वा राजा तन्न गत्वा तां विलोक्यार्घासने उपाविश्य स्वोत्तरीयेणाश्र्‌ प्रवाह विलोपयन्‌ पृच्छति सम देवीं दुःखकारणम्‌ । सा न कथयति । तदा कयाचित्सख्योक्त परपुत्रान्‌ हा दुःखिता व्ुवेति । देवी पुत्राथिनीति श्रुत्वा राजा श्राह'-हे देवि, एहि प्रावस्ताव ज्जिनं पूजयितुमिति दुःख विस्मारयितु* जिनालय नीता तेन । जिन पूजयित्वा ज्ञानसागरमुमुक्ष च वन्दित्वा धर्मश्र्‌ तेरनन्तर ३ राजा पृच्छति स्म्त तस्या देव्याः पुत्रों भविष्यति न वेति । ततो मुनिरुवाच -षट्खण्डाधिपतिश्चरमा- ज्पुत्रो भविष्यतीति। ततः संतुष्ट दस्पती यूहूं गती। ततः कतिययदिनेत्तनुजोइ्जनिष्ट । तस्य रत्नशेखर इति नाम कृत्वा सुखेच स्थितां मातापितरी।स च वृद्धिगत. सप्तवर्षानन्तरं तज्जिनालये ज॑नोपाध्यायान्तिके पठितु' समपितः । कतिययदिने: सकलशास्त्रविद्यासु कुशलो जातो युवा च । एकदा घेत्रोत्सदे चन॑ जलक्रीडार्थ गतः । जलक़ीडानन्तर॑ तत्न मसण्मिण्डपस्थे * विचित्रसिहासने आसितो कक 3 23»: ०2 “मेनका. सिलरमनमन-+ रत. >+ बल वंन्‍न्‍ीन्‍न-+ *«5 ५++ न्ू+5 न. नकन»५नजक-> कक ७००» लक, कक इसकी कथा--जम्बृद्वीपके पूर्व विदेहमे स्थित सीता नदीके तटपर मगलावती देशके ग़न्तर्गत रत्ततनयपुर है । उसके राजाका नाम वज्जसेन और उसकी पत्नीका नाम जयांयती था। वह एक समय महलके ऊपर छतपर सखीजनोके साथ दिव्य आासनपर बेठी हुई दिशाका अवलोकन कर रही थी। इतनेमे कुछ युकुमार वालक पढ़ करके जिनालयसे बाहर निकले । उनको देखकर वह 'मुभे कब पुत्र होगा' इस प्रकार चिन्तातुर होती हुई ढु खसे ग्रॉसुओओको बहाने लगी । किसी सखीने इस बातकी भूचना करते हुए राजासे निवेदन किया कि हे देव | रानी जयावती रुदन कर रही है। इस बातको अनेफर राजा अन्त'पुरमे गया। उसने वहाँ अर्धासनपर बैठते हुए देवीको रुदन करती हुईं देखकर अपने दुपट्टासे उसके अश्रभवाहकी पोछा और दु खके कारणको पूछा । परन्तु उसने कुछ नही कहा । तब किसी सख्ीने कहा कि यह इसरोके पृत्नोंको देखकर दुखी हो गई है । रानी पुत्रकी अभिलाषा फरती है, यह सुनकर राजाने उससे कहा कि है देवि | आओो जिनपूजाके लिये चले । इस प्रकार बट दु खको भुलानेके लिये उसे जिनालयमे ले गया। वहाँ राजाने जिन भगवान्‌की पजा की और फिर गानसागर मुमुश्षुकी वन्दना करके धर्मश्रवण करनेके पश्चात्‌ उसने उनसे पछा कि इस देवीके उन होगा या नही । मुनि बोले--इसके छह खण्डोका स्वामी ( चकवर्ती ) चरमणरीरी पत्र होगा। सर भन्‍्तुद होकर वे दोनों पति-पत्नी घर वापिस गये | तत्पश्चात्‌ कुछ ही दिनोमे उसके पुत्र से हपा। उसका रलभेसर नाम रखकर माता और पिता सुखपूर्वक स्थित हुए | वह क्रमण बड्धिको भाप होकर उय सात वर्षका हो गया तव उसे पहनेके लिये जियालयमे जैन कर पास का पद । ४ हि मह 1 दिनोमे पसक्त शास्वविद्याओ्रोमे प्रवोण हो गया । अञ्रव वह जवान दीं गया दिन बह वसलोलबमे जनकीड़ा करनेके जिये कनमें गया । जलकऋरीडाके पश्चाद्‌ वह मण्यि- ६६'प्राए' भदिन्प पर शा: वास्तिक के. था विस्मरिपितु । इ च्न हक ७ ए इन हि श्रुतेनन्तर । ४, वश पटयडाधिपति *1 मं पमदपास्य। ९ रब




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