पुरुषार्थसिद्धुपाय | Purusharthasiddhupay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुरुषाथसिद्धबुपायः । १्डु
भावाथे--पूर्वकथित कर्मजनित पय्योयोको आत्मा मान लेना इसको ही विपरीत श्रद्धा
न कहते हैं, इस विपरीत श्रद्धानके समूल नष्ट करनेको सम्यन्दशन, कर्मजनित प्यौयोसे
मिन्न शुद्धेचैतन्यस्वरूपके यथावत् जाननेकों सम्यस्शान और कर्मजनित पर्यावोंसे उदा-
सीन हो निजस्वरूपमें खिरीभूत होनेको सम्यक्चारित्र कहते हैं तथा इन तीनों अथोत्
सम्यग्दर्शन सम्य्ज्ञान और सम्यक्चारित्रका समुदायही कार्यसिद्ध होनेका उपाय है. अन्य
कोई उपाय नहीं है.
अनुसरतां पद्मेतत् करम्बिताचारनिद्यनिरभिझछ्खा ।
ह एकान्तविरतिरूपा भवति,सुनीनामछौकिकी बृत्ति! ॥ १६॥
अन्वयार्थो--] एतत्पद अनुसरतां ] इस रत्नत्रवरूप पदवीफो अनुसरण करनेवाले
अथीत् प्रा्हुए [ मुनीनां ] महा मुनियोंकी [ हृत्ति;] बंति [करम्बिताचारनित्यनिरभि-
मुखा ] पापकरियासम्मिश्रित आचारोंसे सवेदा पराछुख, तथा [ एकान्तविरतिरूपा ] परद्रव्योंसे
स्वेधा उदासीनरूप और [अछौकिकी ] छोकसे विकक्षण अकारकी [भवति] होती है.
भावाध--महामुनियोंकी प्रवृत्ति जगतके छोगोंसे सबंथा निराडी होती है. थ्रह-
खीका आचरण पापक्रियासे मिलाहुआ होता है और ऐसे आचरणोंसे महामुनि सवेथा
दूर रहते हैं. वह केवल अपने आत्मीक चेतन्य स्वभावका ही अनुभवन करते हैं.
बहुशः समस्तविरति प्रदर्शितां थो न जातु ग्रह्मति।
तस्यैकदेशविरतिः कथनीयानेन वीजेन ॥ १७ ॥
-अन्चया्थो--[य+] जो जीव [वहुश्ः] वारंवार [ प्रदर्शितां] दिखलाई हुई [स-
प्रस्तविरतिं ] सकलपापरहित मुनिदृत्तिको [जातु] कदाचित् [ न मह्मति ] ग्रहण न करे
तो [तस्य] उसे [एकदेशविरति।] एकोदेश पापक्तियारहित ग्रहस्थाचारकी [अनेन
वीनेन ] इस हेतुसे [कथनीया ] समझावे अथोत् कथन करे
भआावाथे--जो जीव॑ उपदेश सुननेका अमिराषी हो, उसे पहिंले मुनिधमका उपदेश
देना चाहिये और यदि वह मुनिधम अहण करने योग्य सामथ्ये न रखता हो तो तत्वश्चात्
श्रावकधर्मका उपदेश देंवे. क्योंकि,---
यो यतिधमेसकथयन्नुपद्शिति गृहस्थंघममल्पमतिः |
तस्य 'भगवत्परवचने प्रदशित॑ निम्रहस्थान ॥ १८ ॥
नवयाथों--[ य।] जो [ अस्पमति: ] तुच्छबुद्धि उपदेशक, [यतिधर्मंम्] मुनि-
धर्मको [ अकथयन्_] नहीं कह करके [गहस्थधमेम] श्रावकपर्मकी [उपदिशति] उप
देश देता है [तस्य] उस उपदेशकको [भंगवत्मवचने ] मगवतके सिद्धान्तमें [निग्नह-
स्थान] दंड देंनेका स्थान [प्रदर्शित] मदर्शित किया है. ह
१ अन्तरंग परिणास-वर्तन,
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