नागार्जुन | Nagarjun

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Nagarjun by सुरेशचन्द्र त्यागी - Suresh Chandra Tyagi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व को उपत्यासिका या लघु उपन्यास ही कहना चाहिये क्योंकि व्यापक फलक पर उनकी रचना नहीं हुई है। मिथिलांचल की प्रकृति रीति-रिवाज पारम्पर्कि अनुष्ठान और भाषायी मुहावरे उनके उपत्यासों में यत्र-तत्र देखे जा सकत हु। रति- नाथ की चाची के नवीन संस्करण (1977) को ही नागाजुंन ने प्रामाणिक सना है ।इससे पूर्व के संस्करणों से अदलील और अप्रासंगिक अंधों को फुटनोटों को हटाकर उन्होंने मूल पाठ को सहज-सुबोध कर दिया है । रचना के प्रकाशित होने के बाद लेखक द्वारा इस प्रकार का परिवर्तन मुझे वाछ ीय नहीं लगता । आलोचना के केंव्र में इससे भ्रम फैलता है । लेखक के विकास-क्रम को समझने में भी इससे कठिनाई होती है । अपने बचपन के कुछ आत्मकथात्मक संकेत नागाज न ने इस उपन्यक्स में दिये है--रतिनाथ के माध्यम से । इस उपन्यास की चर्चा का यह भी एक कारण रहा है । नागाजुन ने अपने उपन्यासों में सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध एक वातावरण का निर्माण किया है । विधवाओ की कारुणिक स्थिति बेमेल विवाह बाल-विवाह) कृषकों का शोषण वर्ग-वैषस्य अंधविद्वास नेताओं के ्रष्टाचरण आदि का यथार्थ चित्रण नागाजु न ने अपने उपन्यासों में किया है और अपने प्रगतिवादी हष्टकोण से इन बुराइयो से जूझने वाले चरित्रों की भी सृष्टि की है जिससे सामाजिक जागरण का लक्ष्य रखने वाले लोग प्रेरणा ले सकें । वर्णनात्मक और आपत्मकथात्मक शंत्ा मे लिखित नागाजुँन के उपस्यास अपनी आंचलिकता के कारण उल्लेखनीय हैं लेकिन कही-कह्ी आचलिकता का मोह उन पर इतना हावी रहा है कि पाठक ऊबने लगता है । प्रकृति के प्रति नागाजु न का प्रेम उनके उपन्यासों में भी जगह-जगह दीखता है । छोटे कथानकों को लेकर भी नागाजुं न उनका स्वाभाविक निर्वाह नहीं कर सके है भर अंत तक पहुंचते पहुंचते कथानक सामाजिक उपदेदा देकर दम तोडते प्रतीत होते हैं। समाज-सुधार बुरी बात नहीं है उसे बतौर गाली प्रयोग नहीं किया जा सकता । लेकिन सुधार का उपदेश देता उपन्यास के शिल्प की दुबंलता बन जाता हैं । व्यापक जीवन-दष्टि और विस्तुत परिप्रेक्ष्य लेकर उपन्यास लिखने की क्षमता नागाजूत में नहीं है यह तो मै नहीं कहता । वह कोई बुहद उपन्यास लिख रहे हों यह संभव है 1 अन्नहीनम क्रियाहीनम्‌ शीर्षक संकलन में उनके स्फूट लेख है । यात्रा-विवरण तो इसमें है ही राहुल और यशपाल के बारे में भी दो लेख हैं । आईने के सामने मात्म-विदलेषण है भौर एक नये ढंग से लिखा गया है । इन विभिन्न लेखों के आधार पर नागाजुँन को बहुत गंभीर गद्यलेखक नहीं माना जा सकता । निराला के बारे में लिखित पुस्तक नागाजुन को समीक्षक की प्रतिष्ठा तो नहीं दे सकती पर उसकी रोचकता असंदिग्ध है। निराला के उपन्यासों से लम्बे-लम्बे उद्धरण देकर पुस्तक का कलेवर बढ़ाया गया है । नागाजुत का दावा हू कि अपनी प्रह्लरता औ ( रु )




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